"भारतीय लिपियाँ": अवतरणों में अंतर
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[[भारत]] में बहुत सी [[भाषा]]एं तो हैं ही, उनके लिखने के लिये भी अलग-अलग [[लिपि]]याँ प्रयोग की जातीं हैं। किन्तु इन सभी लिपियों में बहुत ही साम्य है। ये सभी वर्णमालाएँ एक अत्यन्त तर्कपूर्ण ध्वन्यात्मक क्रम (phonetic order) में व्यवस्थित हैं । यह क्रम इतना तर्कपूर्ण है कि [[अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक संघ]] (IPA) ने [[अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक लिपि]] के निर्माण के लिये मामूली परिवर्तनों के साथ इसी क्रम को अंगीकार कर लिया ।
== भारत में लिपि का उद्भव और विकास ==
प्राचीन भारत की दो लिपियों में "[[खरोष्ठी]]" दाएँ से बाएँ लिखी जाती थी और '''[[ब्राह्मी]]''' बाएँ से दाएँ। प्राय: यहाँ के पश्चिमोत्तर सीमाप्रदेशों ([[पंजाब]], [[कश्मीर]]) में ही प्राचीन काल में खरोष्ठी का प्रचार था। दूसरी लिपि "ब्राह्मी" का क्षेत्र अत्यंत व्यापक था। भारतीयों की परंपरागत मान्यता के अनुसार [[संस्कृत]] भाषा (ब्राह्मी या भारती) और ब्राह्मीलिपि का प्रवर्तन सृष्टिकर्ता "ब्रह्मा" द्वारा आरंभिक युग में हुआ। कदाचित् इस कल्पना या मान्यता का आधार "ब्राह्मी" नाम है। "ब्राह्मी तु भारतीय भाषा गीर्वाग्वाणी सरस्वती"
"[[वेद]]" या "वैदिक वाङ्मय" के लिए प्रचलित "श्रुति" शब्द के आधार पर अनेक पाश्चात्य पंडितों ने सिद्धांत निकाला है कि "दशोपनिषत्काल" तक निश्चय ही भारत में लेखनविद्या या लिपिकला का अभाव था। वैदिक वाङ्मय का अध्यापन गुरु शिष्य की मुख परंपरा और स्रवण परंपरा से होता था। [[लिपि]] का अभाव ही उसका मुख्य कारण था। "[[पाणिनि]]" को ई.पू. चतुर्थ शताब्दी का माननेवाले "[[मैक्समूलर]]" के मत से उस समय तक लिपि का अभाव था। "बर्नेल" के अनुसार (अशोक) लिपि का उद्भव फिनीशियावासियों से लिखना सीखने के बाद उन्हीं की लिपि से हुआ। यूरोप की भी प्राय: अधिकांश लिपियाँ उसी लिपि से विकसित मानी गई हैं। भारत में इसका प्रवेश ई.पू. 500 से 400 तक के बीच हुआ। उक्त मत से असहमति प्रकट करते हुए "बूलर" का कहना है कि [[भारत]] में प्राचीन लिपि का विकास "सामी" (सेमिटिक) लिपि से हुआ है, जिसके अक्षरों का प्रवेश ई.पू. 800 के आस पास (संभवत:) हुआ था। ई.पू. 500 के लगभग अथवा उससे भी पूर्व भारतीयों द्वारा ब्राह्मी के विकास और निर्माण का कार्य बड़े श्रम से संपन्न हो गया था। "बूलर" ने लिपि-विद्या-संबंधी ग्रंथ में कहा है कि कुछ नव्यतम प्रमाणों के आधार पर [[भारत]] में लिपि के प्रवेश का समय ई.पू. 10वीं शती या उससे भी पूर्व स्थिर किया जा सकता है।
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[[सम्राट अधोक|अशोक]] के शिलास्तंभ अभिलेखों से स्पष्ट है कि ई.पू. चतुर्थ शताब्दी तक लिपिकला भारत में काफी विकसित हो चुकी थी। पिपरावा, बडली, सोहगौरा, महस्थान आदि में उपलब्ध अशोकपूर्वयुगीन लघु लेखों के आधार पर भारत में लिपिप्रयोग का कार्य ई.पू. 5वीं शती के पूवार्ध तक चला जाता है। प्राचीन यूनानी यात्री लेखकों के अनुसार कागज की और ई.पू. चतुर्थ शती में भारत को लेखन कला की अच्छी जानकारी थी। बौद्ध वाङ्मय के आधार पर ई.पू. 400 या उसके भी पहले ई.पू. छठीं शती तक उस जानकारी की बात प्रमाणित है। स्वयं "पाणिनि" के [[धातुपाठ]] में 'लिपि' और 'लिबि' धातु हैं। [[गौरीशंकर हीराचंद ओझा|डा. गौरीशंकर हीराचंद ओझा]] ने अनेक शास्त्रीय ग्रंथों के आधार पर सिद्ध किया है कि "पाणिनि" और "[[यास्क]]" से भी अनेक शताब्दी पूर्व भारत में अनेक लिखित ग्रंथ थे और लेखन कला का प्रयोग भी होता था। बूलर, "बॉटलिक" और "रॉथ" ने भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से [[भारत]] में लिपिकला की प्राचीनता स्वीकार की है। कोलब्रुक कनिंघम, गौरीशंकर हीराचंद ओझा आदि भी भारत में लेखनकला का व्यवहार "बुद्ध से अनेक शताब्दी पूर्व" मानते हैं।
== ब्राह्मी की उत्पत्ति ==
[[ब्राह्मी लिपि|ब्राह्मी]] की उत्पत्ति को विद्वानों का एक वर्ग अभारतीय मानता है। दूसरा वर्ग भारतीय।
* (1) डिके असीरीयाई कीलाक्षरों से संबंद्ध "सामी" से,
* (2) "कुपेरी" चीनी लिपि से,
* (3) डा. साहा आदि "अरबी लिपि" से
* (4) "सेनार्ट", "विल्सन" आदि ग्रीक लिपि से,
* (5) बूलर, बेवरर, टेलर आदि व्यापारियों द्वारा उनकी "मेसोपोटामिया" और "आरमयिक" लिपियों से इसका संबंध बताते हैं। ग्रीक का भी इसी से संबंध है। अत: विलियम और बेवर के मत भी इसी पक्ष के पोषक हैं।
दूसरे वर्ग के लोग इसका विकास स्वतंत्र रूप में भारतीय सीमा के भीतर ही मानते हैं। इधर [[हड़प्पा]] और [[मोहनजोदड़ो]] से उपलब्ध मुद्राओं के लेखखंडों के आधार पर [[सिंधुघाटी की सभ्यता|सिंधुघाटी सभ्यता]] की लिपि से "ब्राह्मी" की उत्पत्ति बताते हैं। कुछ साहसिक विद्वानों ने सुमेरी, सिंधुघाटी और वैदिक आर्य- तीनों सभ्यताओं को एक मूल स्रोत से विकसित मानकर किसी एक लिपि से अथवा प्राचीनतम [[सुमेरी लिपि]] से ब्राह्मी के उद्भव का अनुमान किया है। पर यह मत अभी गंभीरत: विचारणीय है। सिंधुघाटी की लिपि ब्राह्मी और खरोष्ठी दोनों से विचित्र और भिन्न लगती है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि अधिकांश भारतीय पंडितों के मतानुसार "देवनागरी" का विकास उस "ब्राह्मी" से हुआ है जो ई.पू. हजारों वर्षों से [[भारत]] में प्रचलित थी और जिसका विकास स्वयं भारत में और भारतीयों द्वारा हुआ था।
== भारतीय लिपियों का साम्य ==
* लगभग सभी लिपियाँ [[ब्राह्मी लिपि]] से व्युत्पन्न हैं।
* सभी के वर्णों के नाम, क्रम, उच्चारण आदि समान हैं।
* सभी ध्वन्यात्मक हैं एवं कवर्ग, चवर्ग आदि में बंटे हैं।
* सभी के लिखने में '''मात्रा''' का प्रयोग होता है।
* सबमें संयुक्ताक्षरों का प्रयोग होता है।
* सबके वर्ण रूप में काफी मिलते हैं।
* सबमें स्वर, व्यंजन, मात्रा का कांसेप्ट है।
* सबमें वर्णों की संख्या लगभग समान है।
== भारतीय लिपियों की विशेषता ==
=== वर्णात्मक चिह्नावली ===
भारतीय भाषाओं में संगणक पर कार्य करने के लिये उनकी लिपियों की बुनियादी
समझ आवश्यक है। वर्णंमाला में दो प्रकार के वर्ण होते हैं - स्वर व
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चिह्नावली से नहीं है अतः उसपर हम यहाँ चर्चा नहीं करेंगे.)
=== अक्षरात्मक चिह्नावली (syllabic notation) ===
वर्णात्मक चिह्नावली की उपरोक्त कमियों को दूर करने के लिये भारतीय
भाषाओं में अक्षरात्मक चिह्नावली (syllabic notation) का विकास किया
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क्या: क् + य् + आ = क +_ + य + आ
=== संयुक्ताक्षर ===
दूसरी मुख्य बात यह है कि जब किसी शब्द में व्यंजन एक के बाद एक आते हैं
तब उन्हें एक साथ जोड़कर लिखा जाता है जिसे संयुक्ताक्षर भी कहते है। आगे
पंक्ति 164:
एक क्रान्ति से कम नहीं है। यही हमारी परिचित आधुनिक लिपि है।
=== संयुक्ताक्षर व मात्राएँ ===
अक्षरात्मक चिह्नावली में मात्रा लगाने का नियम सरल व संयुक्त दोनों ही
प्रकार के अक्षरों पर एक समान लागू होता है। मतलब यह है कि अक्षर चाहे
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=== 'र' के लिये विशेष नियम ===
`र' के साथ कुछ विशेष नियम है जो संक्षिप्तता की दृष्टि से बनाये गये
पंक्ति 249:
होने पर नीचे आता है।
=== अनुस्वार का प्रयोग ===
हमारी लिपि में एक और तरीका है संक्षिप्तता से लिखने का:- यह है अनुस्वार
पंक्ति 267:
बिन्दु (ं) का एकमात्र उद्देश्य लिपि में संक्षिप्तता लाना है।
=== अन्य बातें ===
यहाँ यह कहना आवश्यक है कि भाषा की दृष्टि से शुद्ध व्यंजन व शुद्ध स्वर
पंक्ति 313:
रूप से कुछ कहना कठिन है।
=== एक और पहलू ===
प्रश्न उठ सकता है कि यदि अक्षर शुद्ध व्यंजन व स्वर का योग है तो मात्रा
क्या है? म् + इ = मि क्यों होता है `मि_' क्यों नहीं ? इनका उत्तर एक
पंक्ति 373:
पहले देखतें हैं गणित के समीकरण को। समीकरण (1') के बांए हिस्से में
यदि हम शून्य जोड दें तो हमें मिलता है:-
;
अब यदि 0 के स्थान पर रखें:- 1 + (-1) तो:-
पंक्ति 414:
ऊ = _ + ऊ इत्यादि।
=== निष्कर्ष ===
हलन्त एक प्रकार से एक ऋणात्मक (negative) वस्तु है, ठीक वैसे ही जैसे
कि ऋणात्मक संख्या (negative number)। जिस प्रकार ऋणात्मक संख्या को
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भारत में शून्य की अवधारणा भाषा में विकसित होकर गणित में गई हो।
== इन्हें भी देखें ==
* [[ब्राह्मी लिपि]]
* [[ब्राह्मी परिवार की लिपियाँ]]
* [[देवनागरी]]
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://vaigyanik-bharat.blogspot.com/2010/06/blog-post_9341.html ध्वनि शास्त्र पर आधारित भारतीय लिपियाँ]
* [http://homepage.ntlworld.com/stone-catend/trind.htm Transliteration of Indic scripts] - यहाँ सभी भारतीय लिपियों के तुल्य देवनागरी वर्ण के लिये तीन सारणियाँ दी यी हैं।
* [http://en.wikipedia.org/wiki/Wikipedia:Indic_transliteration_scheme Wikipedia:Indic transliteration scheme]
* [http://unicode.org/uni2book/ch09.pdf South and South-east Asian scripts]
* [http://stujay.blogspot.com/2009/01/wadafrackizet-or-soowizy-stuart-jay.html
* [http://dakshinatya.blogspot.com/2008/12/staal-sanskrit.html THE SOUND PATTERN of SANSKRIT IN ASIA]
* [http://sktlib.ccv.brown.edu/tomcat/sl/ScriptTable Indic Script Comparison Table]
* [http://anshumanpandey.blogspot.com/ अंशुमन पाण्डेय का ब्लॉग] - Unicode Projects for Digitizing South Asian (and Other) Writing Systems
[[श्रेणी:भारत की लिपियाँ]]
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