"अपरिणत प्रसव": अवतरणों में अंतर

नया पृष्ठ: जब गर्भ २८ से ४० सप्ताह के बीच बाहर आ जाता है तब उसे '''अपरिणत प्रसव'''...
 
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==अपरिणत प्रसव के कारण-==
(१) वे रोग जो गर्भावस्था में माता के स्वास्थ्य के लिए आपत्त्िाजनकआपत्तिजनक हैं, जैसे जीर्ण वृक्क कोप (क्रॉनिक नेफ्राइटिस), गुर्दे की बीमारी, उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर), मधुमेह (डायाबिटी.ज) और उपदंश (सिफिलिस)
 
(२) गर्भावस्था क कुछ विशेष रोग, जैसे गर्भावस्थीय विषाक्तता (टॉक्सोमिया ऑव प्रेगनैन्सी), प्रसवपूर्व रुधिरヒााव
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== प्रबंध- :==
 
पूर्वोक्त कारणों के अनुसार प्रसववेदना प्रारंभ होते ही उपयुक्त चिकित्सा होनी चाहिए, और निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए :
 
 
(१) गर्भकाल में समय समय पर डाक्टरी परीक्षा करानी चाहिए और कोई रोग होने पर उसका उचित उपचार होना चाहिए
 
: (२) रक्तヒाावरक्तश्राव होने पर उपयुक्त उपचार से अपरणित प्रसव रोका जा सकता है।
 
(३) प्रसव ऐसे चिकित्सालयों में होना चाहिए जहाँ अपरिणत शिशु के पालन का उचित प्रबंध हो
 
: (४) प्रसवकाल में उचित चिकित्सा न मिलने से बहुत से बालक जन्म के समय, या जन्मते ही मर जाते हैं। इसलिए प्रसवकाल में कुछ उचित नियमों का पालन आवश्यक है, जैसे गर्भाशय की झिल्ली को अधिक काल तक फूटने से बचाना, झिल्ली फूटने पर नाल को गर्भाशय के बाहर निकलने से रोकना : ऐसी औषधियों का प्रयोग न करना जो बालक के लिए हानिप्रद हों, जैसे अफीम या बारबिटयुरेट्स
 
(५) प्रसव काल में माता को विटामिन 'के' १० मिलीग्राम चार चार धंटे पर देते रहना और बालक को जन्मते ही विटामिन 'के' १० मिलीग्राम सुई द्वारा पेशी में लगाना
 
: (६) प्रसव के समय बालक का सिर बाहर निकालने के लिए किसी प्रकार के अस्त्र का उपयोग न करना
 
: (७) बच्चे के सिर की रक्षा के हेतु संधानिका छेदन (एपीजियोटामी) करना। कुछ रोगों में, जहाँ माता की रक्षा के लिए गर्भ का अंत करना आवश्यक समझा जाता है, अपरिणत प्रसव करवाना आवश्यक होता है।
 
 
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(१) औषधियों का प्रयोग
 
: (२) गर्भाशय की झिल्ली को फोड़ना या गर्भाशय की ग्रीवा को लेमिनेरिया टेन्टस द्वारा फैलाना
 
: (३) संध्या समय दो आउंस अंडी का तेल (कैस्टर ऑयल) पिलाकर तीन घंटे बाद एनीमा लगाना
 
: (४) यदि प्रातःकाल तक पीड़ा आरंभ न हो तो पिट्टियूटरी के दो दो यूनिट की सूई पेशी में आधे आधे घंटे पर छह बार लगाना।
कुनैन (किवनीन) आदि का प्रयोग अब नहीं किया जाता।