"अमरकोश": अवतरणों में अंतर

No edit summary
पंक्ति 25:
 
अमरकोश में साधारण संस्कृत शब्दों के साथ-साथ असाधारण नामों की भरमार है। आरंभ ही देखिए- देवताओं के नामों में '''लेखा''' शब्द का प्रयोग अमरसिंह ने कहाँ देखा, पता नहीं। ऐसे भारी भरकम और नाममात्र के लिए प्रयोग में आए शब्द इस कोश में संगृहीत हैं, जैसे-देवद्रयंग या विश्द्रयंग (3,34)। कठिन, दुलर्भ और विचित्र शब्द ढूंढ़-ढूंढ़कर रखना कोशकारों का एक कर्तव्य माना जाता था। नमस्या ([[नमाज]] या प्रार्थना) [[ऋग्वेद]] का शब्द है (2,7,34)। द्विवचन में नासत्या, ऐसा ही शब्द है। मध्यकाल के इन कोशों में, उस समय प्राकृत शब्द भी संस्कृत समझकर रख दिए गए हैं। मध्यकाल के इन कोशों में, उस समय प्राकृत शब्दों के अत्यधिक प्रयोग के कारण, कई प्राकृत शब्द संस्कृत माने गए हैं; जैसे-छुरिक, ढक्का, गर्गरी ( प्राकृत गग्गरी), डुलि, आदि। बौद्ध-विकृत-संस्कृत का प्रभाव भी स्पष्ट है, जैसे-बुद्ध का एक नामपर्याय अर्कबंधु। बौद्ध-विकृत-संस्कृत में बताया गया है कि अर्कबंधु नाम भी कोश में दे दिया। बुद्ध के 'सुगत' आदि अन्य नामपर्याय ऐसे ही हैं।
 
== टीकाएँ ==
अमरकोष पर आज तक ४० से भी अधिक टीकाओं का प्रणयन किया जा चुका है । उनमें से कुछ प्रमुख टीकाएँ निम्नलिखित हैं –
 
१. '''अमरकोशोद्घाटन''' -: इसके रचनाकार [[क्षीरस्वामी]] हैं । यह क्षीरस्वामी का प्रमेयबहुल ग्रन्थ है । यह अमरकोष की सबसे प्राचीन टीका है । क्षीरस्वामी के समय के विषय में स्पष्टरूप से नहीं कहा जा सकता । परन्तु विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर इनका समय १०८० ई० से ११३० ई० के मध्य निर्धारित किया जा सकता है ।
 
२. '''टीका सर्वस्व''' -: इसके रचनाकार सर्वानन्द हैं । ये बंगाल के निवासी थे । इनके विषय में स्पष्ट साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जिसके अनुसार इनका समय ११५९ ई० है ।
 
३. '''कामधेनु''' -: इसके रचनाकार सुभूतिचन्द्र हैं । इस टीका का अनुवाद [[तिब्बती भाषा]] में भी उपलब्ध है । इनका समय ११९१ ई० के आसपास है ।
 
४. '''रामाश्रमी '''-: इस टीका के रचनाकार [[भट्टोजि दीक्षित]] के पुत्र [[भानुजि दीक्षित]] हैं । इस टीका का वास्तविक नाम ’व्याख्या सुधा’ है । संन्यास लेने के बाद भानुजि ने अपना नाम रामाश्रम रख लिया । उनके नाम के आधार पर यह टीका “रामाश्रमी टीका” के नाम से प्रसिद्ध हुई । आज यह प्रायः इसी नाम से जानी जाती है ।
 
रामाश्रमी टीका में, अमरकोश में परिगणित शब्दों की व्युत्पत्ति और निरुक्ति दी गयी है । अभी तक इस टीका का हिन्दी अनुवाद उपलब्ध नहीं है । यह अमरकोष की एकमात्र ऐसी टीका है, जिसमें शब्दों की व्याकरणिक व्युत्पत्तियों के साथ–साथ निरुक्ति भी दी गयी है । [[यास्क]] कृत निरुक्त में कहा गया है –
 
“सर्वाणि नामानि आख्यातजानि ।“
 
इसी सिद्धान्त का पालन करते हुए भानुजि दीक्षित ने अमरकोष में परिगणित शब्दों का निर्वचन किया है । वे भी सभी शब्दों को धातुज मानते हुए उनका निर्वचन करते हैं ।
 
==अमरकोश के कुछ श्लोक==
Line 61 ⟶ 78:
::: पद्ये यशसि च श्लोकश्शरे खड्गे च सायकः।
::: जम्बुकौ क्रोष्टुवरुणौ पृथुकौ चिपिटार्भकौ।।
 
== टीकाएँ ==
अमरकोष पर आज तक ४० से भी अधिक टीकाओं का प्रणयन किया जा चुका है । उनमें से कुछ प्रमुख टीकाएँ निम्नलिखित हैं –
 
१. '''अमरकोशोद्घाटन''' -: इसके रचनाकार [[क्षीरस्वामी]] हैं । यह क्षीरस्वामी का प्रमेयबहुल ग्रन्थ है । यह अमरकोष की सबसे प्राचीन टीका है । क्षीरस्वामी के समय के विषय में स्पष्टरूप से नहीं कहा जा सकता । परन्तु विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर इनका समय १०८० ई० से ११३० ई० के मध्य निर्धारित किया जा सकता है ।
 
२. '''टीका सर्वस्व''' -: इसके रचनाकार सर्वानन्द हैं । ये बंगाल के निवासी थे । इनके विषय में स्पष्ट साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जिसके अनुसार इनका समय ११५९ ई० है ।
 
३. '''कामधेनु''' -: इसके रचनाकार सुभूतिचन्द्र हैं । इस टीका का अनुवाद [[तिब्बती भाषा]] में भी उपलब्ध है । इनका समय ११९१ ई० के आसपास है ।
 
४. '''रामाश्रमी '''-: इस टीका के रचनाकार [[भट्टोजि दीक्षित]] के पुत्र [[भानुजि दीक्षित]] हैं । इस टीका का वास्तविक नाम ’व्याख्या सुधा’ है । संन्यास लेने के बाद भानुजि ने अपना नाम रामाश्रम रख लिया । उनके नाम के आधार पर यह टीका “रामाश्रमी टीका” के नाम से प्रसिद्ध हुई । आज यह प्रायः इसी नाम से जानी जाती है ।
 
रामाश्रमी टीका में, अमरकोश में परिगणित शब्दों की व्युत्पत्ति और निरुक्ति दी गयी है । अभी तक इस टीका का हिन्दी अनुवाद उपलब्ध नहीं है । यह अमरकोष की एकमात्र ऐसी टीका है, जिसमें शब्दों की व्याकरणिक व्युत्पत्तियों के साथ–साथ निरुक्ति भी दी गयी है । [[यास्क]] कृत निरुक्त में कहा गया है –
 
“सर्वाणि नामानि आख्यातजानि ।“
 
इसी सिद्धान्त का पालन करते हुए भानुजि दीक्षित ने अमरकोष में परिगणित शब्दों का निर्वचन किया है । वे भी सभी शब्दों को धातुज मानते हुए उनका निर्वचन करते हैं ।
 
== वाह्य सूत्र ==