"जगन्नाथ पण्डितराज": अवतरणों में अंतर

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;स्तोत्र
(क) अमृतलहरी (यमुनास्तोत्र), (ख) गंगालहरी (पीयूषलहरी - गंतामृतलहरी), (ग) करुणालहरी (विष्णुलहरी), (घ) लक्ष्मीलहरी और (ङ) सुधालहरी।
(ङ) सुधालहरी।
 
;प्रशस्तिकाव्य
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; सुभाषित -
[[भामिनीविलास]] (पंडितराज शतक) उनका परम प्रसिद्ध मुक्तक कविताओं का संकलन ग्रंथ है। "[[नागेश भट्ट]]" के अनुसार "रसंगगाधर" के लक्षणों का उदाहरण देने के लिए पहले से ही इसकी रचना हुई थी। इसमें चार विलास हैं, प्रथम "प्रस्तावित विलास" में अत्यंत सुंदर और ललित अन्योक्तियाँ हैं जिनमें जीवन के अनुभव और ज्ञान का सरस एवं भावमय प्रकाशन है। अन्य "विलास" हैं - श्रृंगारविलासशृंगारविलास, करुणविलास और शांतिविलास। सायास अलंकरणशैली का प्रभाव तथा चमत्कारसर्जना की प्रवृत्ति में अभिरुचि रखते हुए भी जगन्नाथ की उक्तियों में रस और भाव की मधुर योजना का समन्वय और संतुलन बराबर वर्तमान है। उनके मत से वाङ्मय में साहित्य, सहित्य में ध्वनि, ध्वनि में रस और रसो में शृंगार का स्थान क्रमश: उच्चतर हैं। पंडितराज न अपने पांडित्य और कवित्व के विषय में जो गर्वोक्तियाँ की हैं वे साधार हैं। ये सचमुच श्रेष्ठ कवि भी है और पंडितराज भी।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==