"द्वंद्वात्मक तर्कपद्धति": अवतरणों में अंतर

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'''द्वंद्वात्मक तर्कपद्धति''' (Dialectic या dialectics या dialectical method) असहमति को दूर करने के लिए प्रयुक्त तर्क करने की एक विधि है जो प्राचीनकाल से ही भारतीय और यूरोपीय दर्शन के केन्द्र में रही है। इसका विकास [[यूनान]] में हुआ तथा प्लेटो ने इसे प्रसिद्धि दिलायी।
'''द्वंद्वात्मक तर्कपद्धति''' (Dialectic) का प्रारंभिक रूप [[ग्रीस]] में विकसित हुआ। [[अरस्तू]] के अनुसार [[इलिया के जेनों]] (Zeno of Elia) इस पद्धति के आविष्कर्ता थे। सामान्य अर्थों में [[वादविवाद]] की कला को द्वंद्वात्मक पद्धति कहा गया है।
 
द्वन्दात्मक तर्कपद्धति दो या दो से अधिक लोगों के बीच चर्चा करने की विधि है जो किसी विषय पर अलग-अलग राय रखते हैं किन्तु तर्कपूर्ण चर्चा की सहायता से सत्य तक पहुँचने के इच्छुक हैं।
 
==परिचय==
'''द्वंद्वात्मक तर्कपद्धति''' (Dialectic) का प्रारंभिक रूप [[ग्रीस]] में विकसित हुआ। [[अरस्तू]] के अनुसार [[इलिया के जेनों]] (Zeno of Elia) इस पद्धति के आविष्कर्ता थे। सामान्य अर्थों में [[वादविवाद]] की कला को द्वंद्वात्मक पद्धति कहा गया है।
 
इसको अत्यंत सुलझा हुआ एवं स्पष्ट रूप [[सुकरात]] (साक्रेटीज) ने दिया । प्रश्न और उत्तर के माध्यम से समस्या पर विचार करते हुए समन्वय की ओर उत्तरोत्तर बढ़ते जाना इस पद्धति की मूल विशेषता है। [[अफलातून]] (प्लेटो) ने अपने संवादों में सुकरात को महत्वपूर्ण स्थान दिया है, जिससे पता चलता है कि वे इस पद्धति के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि थे। अफलातून ने द्वंद्वात्मक तर्क को परमज्ञान का सिद्धांत माना है। उनका [[प्रत्ययों का सिद्धांत]] इसी पद्धति पर आधारित है। द्वंद्वात्मक तर्क की विषयवस्तु ज्ञान मीमांसा एवं वास्तविकता का स्वभाव है । अफलातून के अनुसार यह वैज्ञानिक विधि अन्य सभी विधियों से श्रेष्ठ है, क्योंकि इसके माध्यम से स्पष्टतम ज्ञान प्राप्त होता है। इसलिए द्वंद्वात्मक तर्कज्ञान परमज्ञान है।
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[[श्रेणी:दर्शन]]
[[श्रेणी:शास्त्रार्थ]]
[[श्रेणी:भारतीय दर्शन]]