"शुक्राचार्य": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Shukra cropped.jpg|right|thumb|300px|शुक्र ग्रह के रूप में शुक्राचार्य की मूर्ति]]
'''असुराचार्य''', भृगु ऋषि तथा हिरण्यकशिपु की पुत्री दिव्या के पुत्र जो '''शुक्राचार्य''' के नाम से अधिक ख्यात हें। इनका जन्म का नाम 'शुक्र उशनस' है। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार याह दैत्यों के गुरू तथा पुरोहित थे। कहते हैं, भगवान के वामनावतार में तीन पग भूमि प्राप्त करने के समय, यह [[राजा बलि]] की झारी के मुख में जाकर बैठ गए और बलि द्वारा दर्भाग्र से झारी साफ करने की क्रिया में इनकी एक आँख फूट गई। इसीलिए यह "एकाक्ष" भी कहे जाते थे। आरंभ में इन्होंने [[अंगिरस]] ऋषि का शिष्यत्व ग्रहण किया किंतु जब वह अपने पुत्र के प्रति पक्षपात दिखाने लगे तब इन्होंने शंकर की आराधना कर मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त की जिसके बल पर [[देवासुर संग्राम]] में असुर अनेक बार जीते। इन्होंने 1,000 अध्यायोंवाले "बार्हस्पत्य शास्त्र" की रचना की। गो और जयंती नाम की इनकी दो पत्नियाँ थीं। असुरों के आचार्य होने के कारण ही इन्हें असुराचार्य कहते हैं।▼
'''असुराचार्य''', [[भृगु ऋषि]] तथा [[हिरण्यकशिपु]] की पुत्री दिव्या के पुत्र जो '''शुक्राचार्य''' के नाम से अधिक ख्यात हें। इनका जन्म का नाम 'शुक्र उशनस' है। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार याह दैत्यों के गुरू तथा पुरोहित थे।
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== संदर्भ ==
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