"श्रीकृष्णभट्ट कविकलानिधि": अवतरणों में अंतर
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===श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि का जयपुर आगमन===
भट्टजी का परिवार रींवा नरेश, जिन्हें 'बांधव-नरेश' भी कहा जाता है, की छत्रछाया में कुछ वर्ष रहा और वहां से [[बूंदी]] [[राजस्थान]] इस कारण आ बसा कि बूंदी के राजा भी वैदुष्य के गुणग्राहक थे| जब बूंदी राजपरिवार का सम्बन्ध रींवा में हुआ तो वहां के कुछ राज पंडितों को जागीरें दे कर उन्होंने बूंदी में ला बसाया| बूंदी के राजा बुध सिंह, जो सवाई जयसिंह के बहनोई थे, के शासन में श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि बूंदी के राजपंडित थे| "वह वेद, पुराण, दर्शन, व्याकरण, संगीत आदि शास्त्रों के मान्य विद्वान तो थे ही, संस्कृत, प्राकृत और ब्रजभाषा के एक अप्रतिम वक्ता और कवि भी थे- बूंदी में ही सवाई जयसिंह इनसे इतने प्रभावित हुए कि उनसे किसी भी कीमत पर आमेर आ जाने का अनुरोध किया | श्रीकृष्ण भट्ट ने आमेर में राजपंडित हो कर आ कर बसने का यह आमंत्रण अपने संरक्षक राजा बुधसिंह की स्वीकृति पा कर ही स्वीकार किया, उससे पूर्व नहीं| अनेक ऐतिहासिक काव्यों में यह उल्लेख मिलता है- "बून्दीपति बुधसिंह सौं ल्याए मुख सौं याचि|" <ref>
==सन्दर्भ==
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