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[[चित्र:Illustration Hordeum vulgare0B.jpg|right|thumb|300px|'''जौ''' के पौधे के विभिन्न भाग]]
'''जौ''' पृथ्वी पर सबसे प्राचीन काल से कृषि किये जाने वाले अनाजों में से एक है। इसका उपयोग प्राचीन काल से धार्मिक संस्कारों में होता रहा है। [[संस्कृत]] में इसे "यव" कहते हैं। [[रूस]], [[यूक्रेन]], [[अमरीका]], [[जर्मनी]], [[कनाडा]] और [[भारत]] में यह मुख्यत: पैदा होता है।
 
==परिचय==
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एक एकड़ बोने के लिये 30-40 सेर बीज की आवश्यकता होता है। बीज बीजवपित्र (seed drill) से, या हल के पीछे कूड़ में, नौ नौ इंच की समान दूरी की पंक्तियों मे अक्टूबर नवंबर में बोया जाता है। पहली सिंचाई तीन चार सप्ताह बाद और दूसरी जब फसल दूधिया अवस्था में हो तब की जाती है। पहली सिंचाई के बाद निराई गुड़ाई करनी चाहिए। जब पौधों का डंठल बिलकुल सूख जाए और झुकाने पर आसानी से टूट जाए, जो मार्च अप्रैल में पकी हुई फसल को काटना चाहिए। फिर गट्ठरों में बाँधकर शीघ्र मड़ाई कर लेनी चाहिए, क्योंकि इन दिनों तूफान एवं वर्षा का अधिक डर रहता है।
[[चित्र:Various grains.jpg|right|thumb|300px|जौ, जई एवं उनसे बने कुछ उत्पाद]]
[[चित्र:Tyskie.JPG|right|thumb|300px|पोलैण्ड की जौ से बनी बीयर]]
बीज का संचय बड़ी बड़ी बालियाँ छाँटकर करना चाहिए तथा बीज को खूब सुखाकर घड़ों में बंद करके भूसे में रख दें। एक एकड़ में 20-25१० मनक्विंटल उपज होती है। भारत की साधारण उपज 705 पाउंड और इंग्लैंड की 1990 पाउंड है। शस्चक्रशस्यचक्र की फसलें मुख्यत: चरी, मक्का, कपास एवं बाजरा हैं। उन्नतिशील जातियाँ, सी एन 294 हैं। जौ का दाना लावा, [[सत्तू]], [[आटा]], [[माल्ट]] और [[शराब]] बनाने के काम में आता है। [[भूसा]] जानवरों को खिलाया जाता है।
 
जौ के पौधों में [[कंड्डी]] (आवृत कालिका) का प्रकोप अधिक होता है, इसलिये ग्रसित पौधों को खेत से निकाल देना चाहिए। किंतु बोने के पूर्व यदि बीजों का उपचार ऐग्रोसन जी एन द्वारा कर लिया जाय तो अधिक अच्छा होगा। गिरवी की बीमारी की रोक थाम तथा उपचार अगैती बोवाई से हो सकता है।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/जौ" से प्राप्त