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[[चित्र:Vinegar infused with oreganoEssig-1.jpg|thumb|right|200px|सिरका जिसमें कुछविभिन्न अन्यआकार मसालेवाली मिलायेसिरके गयेकी हैंबोतलें]]
'''सिरका''' या चुक्र (Vinagar) [[भोजन]] का भाग है जो पाश्चात्य, यूरोपीय एवं एशियायी देशों के भोजन में प्राचीन काल से ही प्रयुक्त होता आया है।
 
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सिरके का [[पीएच मान]] (pH value) प्रायः 2.4 से 3.4 होता है। भोजन में प्रयुक्त सिरके में प्रायः ४% से ८% तक एसेटिक अम्ल होता है।
 
सिरका का [[घनत्व]] लगभग 0.96 g/mL होता है। घनत्व का स्तर सिरके की अम्लता पर निर्भर करता है। खाना पकाने मे इस्तेमाल होने वाला सिरके का घनत्व 1.05 g/mL होता है।
 
== इतिहास ==
इसकी उत्पत्ति बहुत प्राचीन है। [[आयुर्वेद]] के ग्रंथों में सिरके का उल्लेख औषधि के रूप में है। [[बाइबिल]] में भी इसका उल्लेख मिलता है। 16वीं शताब्दी में [[फ्रांस]] में मदिरा सिरका अपने देश के उपभोग के अतिरिक्त निर्यात करने के लिए बनाया जाता था।
 
सिरके के बनने में [[शर्करा]] ही आधार है क्योंकि शर्करा ही पहले ऐंजाइमों से किण्वित होकर मदिरा बनती है और बाद में उपयुक्त जीवाणुओं से एसिटिक अम्ल में किण्वित होती है। अंगूर, सेब, संतरे, अनन्नास, जामुन तथा अन्य फलों के रस, जिनमें शर्करा पर्याप्त है, सिरका बनाने के लिए बहुत उपयुक्त हैं क्योंकि उनमें जीवाणुओं के लिए पोषण पदार्थ पर्याप्त मात्रा में होते हैं। फलशर्करा और द्राक्ष-शर्करा का ऐसीटिक अम्ल में रासायनिक परिवर्तन निम्नलिखित सूत्रों से अंकित किया जा सकता है:
 
ये दोनों ही क्रियाएँ जीवाणुओं (Bacteria) के द्वारा होती हैं। यीस्ट (ख़मीर) किण्वन में ऐल्कोहॉल की उत्पत्ति किण्वित शर्करा की प्रतिशत की आधी होती है और सिद्धांतत: ऐसीटिक अम्ल की प्राप्ति ऐल्कोहॉल से ज्यादा होनी चाहिए, क्योंकि दूसरी क्रिया में ऑक्सीजन का संयोग होता है, लेकिन प्रयोग में इसकी प्राप्ति उतनी ही होती है क्योंकि कुछ ऐल्कोहॉल जीवाणुओं के द्वारा तथा कुछ वाष्पन द्वारा नष्ट हो जाते हैं।
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सिरका बनाने की विधियों में दो विधियाँ काफी प्रचलित हैं:
 
*(1) '''मंद गति विधि''' - इस विधि के अनुसार किण्वनशील पदार्थ को जिसमें 5 से 10 प्रतिशत ऐल्कोहॉल होता है, पौधों या कड़ाहों में रख दिया जाता है। ये बर्तन तीन चौथाई तक भरे जाते हैं ताकि हवा के संपर्क के लिए काफी स्थान रहे। इसमें थोड़ा सा सिरका जिसमें एसीटिक अम्लीय जीवाणु होते हैं डाल दिया जाता है और किण्वन क्रिया धीरे-धीरे आरंभ हो जाती है। इस विधि के अनुसार किण्वन धीरे-धीरे होता है और इसके पूरा होने में 3 से 6 माह तक लग जाते हैं। ताप 30 ० सें. से 35 ० सें. इसके लिए उपयुक्त है।
 
*(2) '''तीव्र गति विधि''' - यह औद्योगिक विधि है और इसका प्रयोग अधिक मात्रा में सिरका बनाने के लिए किया जाता है। बड़े-बड़े लकड़ी के पीपों को लकड़ी के बुरादे, झामक (Pumice), कोक (Coke) या अन्य उपयुक्त पदार्थों से भर देते हैं ताकि जीवाणुओं को आलंबन और हवा के संपर्क की सुविधा प्राप्त रहे। इनके ऊपर ऐसीटिक और ऐल्कोहॉलीय जीवाणुओं को धीरे-धीरे टपकाते हैं और फिर जिस रस से सिरका बनाना है उसे ऊपर से गिराते हैं। रस के धीरे-धीरे टपकने पर हवा पीपे में ऊपर की ओर उठती है और अम्ल तेजी से बनने लगता है। क्रिया तब तक कार्यान्वित की जाती है जब तक निश्चित अम्ल का सिरका नहीं प्राप्त हो जाता।
 
== तरह-तरह के सिरके ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/सिरका" से प्राप्त