"नाड़ी": अवतरणों में अंतर

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==प्रमुख नाड़ियाँ और योग शास्त्र==
कई योग ग्रंथ १० नाड़ियों को प्रमुख मानते हैं <ref> [[गोरक्ष शतक]] और [[हठयोग प्रदीपिका]] नाड़ियों का संख्या ७२००० बताते हैं जबकि शिव संहिता कहती है कि नाभि से साढ़े तीन लाख नाड़ियों का उद्गम होता है </ref>। इनमें भी तीन का उल्लेख बार-बार मिलता है - [[ईड़ा]], [[पिंगला]] और [[सुषुम्ना]] । ये तीनों मेरुदण्ड से जुड़े हैं । इसके आलावे गांधारी - बाईं आँख से, हस्तिजिह्वा दाहिनी आँख से, पूषा दाहिने कान से, यशस्विनी बाँए कान से, अलंबुषा मुख से, कुहू जननांगों से तथा शंखिनी गुदा से जुड़ी होती है । अन्य उपनिषद १४-१९ मुख्य नाड़ियों का वर्णन करते हैं ।
 
ईड़ा ऋणात्मक ऊर्जा का वाह करती है । शिव स्वरोदय ईड़ा द्वारा उत्पादित ऊर्जा को चन्द्रमा के सदृश्य मानता है अतः इसे चन्द्रनाड़ी भी कहा जाता है । इसकी प्रकृति शीतल, विश्रामदायक और चित्त को अंतर्मुखी करनेवाली मानी जाती है । इसका उद्गम [[मूलाधार चक्र]] माना जाता है - जो मेरुदण्ड के सबसे नीचे स्थित है ।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/नाड़ी" से प्राप्त