"खगोलीय स्पेक्ट्रमिकी": अवतरणों में अंतर

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== वृद्धि का वक्र ==
रेखाओं के निर्माण की क्रियाविधि और आवश्यक आँकड़े मिल जाने पर रेखा की समोच्च रेखा प्राप्त करना और उसका प्रेक्षणों से तुलना करना संभव है। ऐसी प्रक्रिया बहुधा बड़ी श्रमसाध्य होती है, यद्यपि इन रेखाओं से बहुमूल्य परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। परंतु दुर्बल रेखाओं का स्पेक्ट्रमलेखी से फोटोग्राफ लेन पर उनकी रूपरेखा बड़ी विकृत ज्ञात होती है, क्योंकि रेखा की यथार्थ रूपरेखा प्राप्त करने के लिए स्पेक्ट्रमलेखी की सीमित विभेदनक्षमता (resolving power) पर्याप्त नहीं होती। सौभाग्यवश एक अन्य भौतिक राशि है जिस रेखा की तुल्यांक चौड़ाई (Equivalent width of a line) कहते हैं और जो स्पेक्ट्रमलेखी की सीमित विभेदनक्षमता से प्रभावित नहीं होती। यह शून्य तीव्रतावाली आयताकार परिच्छेदिका (Rectangular profile) की चौड़ाई है जो उतनी ही संपूर्ण ऊर्जा का अवशोषण करती है जितनी वास्तविक परिच्छेदिका। खगोलीय स्पेक्ट्रमिकी के लिए एक रेखा की तुल्यांक चौड़ाई और रेखा को उत्पन्न करनेवाले परमाणुओं की संख्या के बीच एक क्रियात्मक संबंध प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार के संबंध को वृद्धि का वक्र कहते हैं। रेखा की तुल्यांक चौड़ाई (W) का सिद्धांतत: परिकलन भी किया जा सकता है। यदि एक ग्राफ पर Log (W) को Log (N) के फलन के रूप में प्रदर्शित किया जाए (N = अवशोषण परमाणुओं की संख्या) तो वृद्धि का सैद्धांतिक वक्र प्राप्त होता है जिससे ज्ञात होता है कि किस प्रकार किसी रेखा की शक्ति अवशोषण परमाणुओं की संख्या के साथ-साथ बढ़ती जाती है। यथार्थत: इसमें Log Nf सम्मिलित है न कि Log N ।N। यहाँ पर f दोलक की शक्ति है जो परमाणु की अभिरुचि प्रदर्शित करता है जब वह विशेष आवृत्ति के अवशोषण के लिए विवादस्पद मूल अवस्था में रहता है (परंपरा से f को एक पूर्ण संख्या होना चाहिए परंतु क्वांटम के यांत्रिक परिकलन से वह ज्ञात होता है कि f सन्निकटत: कोई पूर्ण संख्या भी नहीं है)।
 
== वृद्धि का आनुभविक वक्र (Empirical curve) ==
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लगभग सभी 50,000 या इससे अधिक तारकीय स्पेक्ट्रमों को जिनका अध्ययन किया जा चुका है इन्हें इस प्रकार नियमित क्रम से व्यवस्थित किया गया है जिसमें उनके अनेक गुण धीरे धीरे बदलते हैं। ऐसे गुण, प्रभावी ताप, रंग, अवशोषणरेखाओं या पट्टियों की आपेक्षिक तीव्रता आदि हैं। स्पेक्ट्रम के वर्गीकरण की जितनी भी प्रणालियाँ प्रस्तावित की गई हैं उनमें ऐनी कैनन (Annie Cannon) द्वारा प्रस्तुत हार्वर्ड वर्गीकरण संतोषजनक रूप से स्वीकृत है। ये वर्ग है - शून्य (o), बी (B), ए (A), एफ (F), जी (G), के (K) और एम (M)। ऐसे अपेक्षाकृत कम तारे हैं जो मुख्य क्रम से के (K) पर शाखा बनाते हैं; वे एन (N), और यस (S) के नाम से जाने जाते हैं। प्रत्येक वर्ग का पुन: अंतर्विभाजन होता है जिसके लिए अक्षरों या 9 तक के अंकों का उपयोग किया जाता है। जिन तारों का स्पेक्ट्रम ज्ञात हो चुका है उनमें 90% से अधिक ए (A), एफ (F), जी (G) और के (K) वर्ग के हैं।
 
'''वर्ग शून्य''' - इसमें 30,000 एंग्स्ट्रॉम से अधिक प्रभावी तापवाले नीलेश्वेत तारे हैं जिनके स्पेक्ट्रम में चमकीले बैंड पाए जाते हैं। ये बैंड धुँधली संतत पृष्ठभूमि पर आरोपित हाइड्रोजन, आयनित हीलियम दुबारा और तिबारा आयनित और नाइट्रोजन के कारण हैं, जैसे टी प्यूपिस (T. Pupis), वाल्फ राये (Wolf Rayet) तारे ।तारे।
 
'''वर्ग बी''' - इसमें लगभग 20,000 एंग्स्ट्रॉम ताप के श्वेत तारे है जिनके स्पेक्ट्रम में प्रबल हाइड्रोजन रेखाएँ होती हैं। हीलियम अनुपस्थित होता है। एच (H) और के (K) रेखाएँ कुछ-कुछ दिखाई देती हैं। वर्धित धात्विक रेखाएँ भी पाई जाती हैं परंतु वे दुर्बल होती हैं, जैसे लुब्धक (Sirius), अभिजित (Vega) तथा फोमलहॉट (Fomalhaut)।