"जगन्नाथ पण्डितराज": अवतरणों में अंतर
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पंडितराज जगन्नाथ वेल्लनाटीय कुलोद्भव तैलंग ब्राह्मण, गोदावरी जिलांतर्गत मुंगुडु ग्राम के निवासी थे। उनके उनके पिता का नाम "पेरुभट्ट" (पेरभट्ट) और माता का नाम लक्ष्मी था। पेरुभट्ट परम विद्वान् थे। उन्होंने ज्ञानेंद्र भिक्षु से "ब्रह्मविद्या", महेंद्र से [[न्यायशास्त्र|न्याय]] और [[वैशेषिक]], खंडदेव से "[[पूर्वमीमांसा]]" और शेषवीरेश्वर से महाभाष्य का अध्ययन किया था। वे अनेक विषयों के अति प्रौढ़ विद्वान् थे। पंडितराज ने अपने पिता से ही अधिकांश शास्त्रों का अध्ययन किया था। शेषवीरेश्वर जगन्नाथ के भी गुरु थे।
==किम्वदंतियां==
प्रसिद्धि के अनुसार जगन्नाथ, पहले जयपुर में एक विद्यालय के संस्थापक और अध्यापक थे। एक काजी को वाद-विवाद में परास्त करने के कीर्तिश्रवण से प्रभावित दिल्ली सम्राट् ने उन्हें बुलाकर अपना राजपंडित बनाया। "रसगंगाधर" के एक श्लोक में "नूरदीन" के उल्लेख से समझा जाता है नूरुद्दीन मुहम्मद "जहाँगीर" के शासन के अंतिम वर्षों में (17वीं शती के द्वितीय दशक में) वे दिल्ली आए और शाहजहाँ के राज्यकाल तथा दाराशिकोह के वध तक (1659 ई.) वे दिल्लीवल्लभों के पाणिपल्लव की छाया में रहे। मुग़ल विद्वान युवराज दाराशिकोह के साथ उनकी मैत्री घनिष्ठ थी पर उसकी हत्या के पश्चात् उनका उत्तर-जीवन मथुरा और काशी में में हरिभजन करते हुए बीता। उनके ग्रंथों में न मिलने पर भी उनके नाम से मिलने वाले पद्यों और किंवदंतियों के अनुसार पंडितराज का "लवंगी" नामक नवनीतकोमलांगी, यवनसुंदरी के साथ प्रेम और शरीर-संबंध हो गया था जो एक दरबारी गायिका/ नर्तकी
==साहित्यिक अवदान==
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