"व्युत्पत्तिशास्त्र": अवतरणों में अंतर

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[[भाषा]] के शब्दों के इतिहास के अध्ययन को '''व्युत्पत्तिशास्त्र''' (etymology) कहते हैं। इसमें विचार किया जाता है कि कोई शब्द उस भाषा में कब और कैसे प्रविष्ट हुआ; किस स्रोत से अथवा कहाँ से आया; उसका स्वरूप और अर्थ समय के साथ किस तरह परिवर्तित हुआ है। व्युत्पत्तिशास्त्र में शब्द के इतिहास के माध्यम से किसी भी राष्ट्र, प्रांत एवं समाज की भाषिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि अभिव्यक्त होती है।
 
''''व्युत्पत्ति'''' का अर्थ है ‘विशेष उत्पत्ति’ ।उत्पत्ति’। किसी शब्द के क्रमिक इतिहास का अध्ययन करना, [[व्युत्पत्तिशास्त्र]] का विषय है ।है। इसमें शब्द के स्वरूप और उसके अर्थ के आधार का अध्ययन किया जाता है ।है। [[अंग्रेजी]] में व्युत्पत्तिशास्त्र को 'Etymology' कहते हैं। यह शब्द [[यूनानी भाषा]] के यथार्थ अर्थ में प्रयुक्त Etum तथा लेखा-जोखा के अर्थ में प्रयुक्त Logos के योग से बना है, जिसका आशय शब्द के इतिहास का वास्तविक अर्थ सम्पुष्ट करना है |
 
[[भारतवर्ष]] में व्युत्पत्तिशास्त्र का उद्भव बहुत प्राचीन है। जब [[वेद]] मन्त्रों के अर्थों को समझना सुगम नहीं रहा तब भारतीय मनीषियों द्वारा वेदों के क्लिष्ट शब्दों के संग्रह रूप में [[निघण्टु]] ग्रन्थ लिखे गए तथा निघण्टु ग्रन्थों के शब्दों की व्याख्या और शब्द व्युत्पत्ति के ज्ञान के लिए [[निरुक्त]] ग्रन्थों की रचना हुई। वेदों के अध्ययन के लिए [[वेदांग|वेदागों]] के छ: शास्त्रों में निरुक्त शास्त्र भी सम्मिलित हैं ।हैं। निरूक्त शास्त्र संख्या में 12 बतलाए जाते हैं, लेकिन इस समय आचार्य [[यास्क]] प्रणीत एक मात्र निरूक्त उपलब्ध है।
 
== विषय का प्राचीनतम मूल ==