"बृहतत्रयी (संस्कृत महाकाव्य)": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: अंगराग परिवर्तन
पंक्ति 26:
[[माघ कवि]] से भी अधिक श्रीहर्ष ने इसे काव्यबाधक पांडित्यप्रदर्शन के योग से बहुत बढ़ा दिया है जिससे लघुकथानकवाला काव्य अति वृहत् हो गया है। शृंगारी विलासों और मुख्यत: संयोग केलियों के कुशलशिल्पी और रसिक नागरों की विलासवृत्तियों के अंकन में आसंजनशील होकर भी कवि के दार्शनिक वैदुष्य के कारण काव्य में स्थान स्थान पर रुक्षता बढ़ गई। पुनरुक्ति, च्युतसंस्कृति आदि अनेक दोष भी यत्र तत्र ढूँढ़े जा सकते हैं। परंतु इनके रहने पर भी अपनी भव्यता और उदात्तता, कल्पनाशीलता और वैदुष्यमत्ता, पदलालित्य और अर्थप्रौढ़ता के कारण महाकाव्य में कलाकार की अद्भुत प्रतिभा चमक उठी है, अलंकारमंडित होने पर भी उसकी क्रीड़ा में सहज विलास है। उसमें प्रौढ़ शास्त्रीयता और कल्पनामनोहर भव्यता है। बृहत्त्रयी के तीनों महाकाव्यों का अध्ययन पंडितों के लिए आज भी परमावश्यक माना जाता है।
 
== इन्हें भी देखें==
*'''[[वृहत्त्रयी]]''' - [[चरकसंहिता]], [[सुश्रुतसंहिता]] तथा [[अष्टांग हृदय|अष्टाग्ङहृदयसंहिता]] को सम्मिलित रूप से 'वृहत त्रयी' कहा जाता है।