"अन्तरराष्ट्रीय विधि": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:1648 verhandlungen-rathaussaal-muenster-westfaelischer-friede 1-640x420.jpg|[[वेस्टफेलिया की शांति]], अन्तरराष्ट्रीय कानून के उद्भव के स्रोतों में से एक है।]]
 
'''अन्तरराष्ट्रीय विधि''' (International law) से आशय उन नियमों से है जो स्वतंत्र देशों के बीच परस्पर सम्बन्धों (विवादों) के निपटारे के लिये लागू होते हैं। अन्तरराष्ट्रीय कानून किसी देश के अपने कानून से इस अर्थ में भिन्न है कि अन्तरराष्ट्रीय कानून दो देशों के सम्बन्धों के लिए लागू होता है न कि दो या अधिक नागरिकों के बीच।
 
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=== इतिहास ===
अंतरराष्ट्रीय कानून (विधि) के उद्भव तथा विकास का इतिहास निश्चित काल सीमाओं में नहीं बाँटा जा सकता। प्रोफेसर हालैंड के मतानुसार पुरातन काल में भी स्वतंत्र राज्यों में मान्यता प्राप्त ऐसे नियम थे जो दूतों के विशेषाधिकार, संधि, युद्ध की घोषणा तथा युद्ध संचालन से संबंध रखते थे (देखिए-लेक्चर्स ऑन इंटरनैशनल लॉः हालैंड)।थे। प्राचीन भारत में भी ऐसे नियमों का उल्लेख मिलता है ([[रामायण]] तथा [[महाभारत]])। [[यहूदी]], [[यूनान|यूनानी]] तथा [[रोम]] के लोगों में भी ऐसे नियमों का होना पाया जाता है। 14वीं, 13वीं, सदी ई. पू. में खत्ती रानी ने मिस्री फ़राऊन को दोनों राज्यों में परस्पर शांति और सौजन्य बनाए रखने के लिए जो पत्र लिखे थे वे अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि से इतिहास के पहले आदर्श माने जाते हैं। वे पत्र खत्ती और फ़राऊनी दोनों अभिलेखागारों में सुरक्षित रखे गए जो आज तक सुरक्षित हैं। मध्य युग में शायद किसी प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय कानून की आवश्यकता ही न थी क्योंकि समुद्री दस्यु समस्त सागरों पर छाए हुए थे, व्यापार प्रायः लुप्त हो चुका था और युद्ध में किसी प्रकार के नियम का पालन नहीं होता था। बाद में [[पुनर्जागरण]] एवं [[धर्म सुधार]] का युग आया तब अंतर्राष्ट्रीय कानून के विकास में कुछ प्रगति हुई। कालांतर में मानव सभ्यता के विकास के साथ आचार तथा रीति की परंपराएँ बनीं जिनके आधार पर अंतर्राष्ट्रीय कानून आगे बढ़ा और पनपा। 19वीं शताब्दी में उसकी प्रगति विशेष रूप से विभिन्न राष्ट्रों के मध्य होने वाली संधियों तथा अभिसमयों द्वारा हुई। सन् 1899 तथा 1907 ई. में हेग में होने वाले शांति सम्मेलनों ने अंतर्राष्ट्रीय कानून के रूप को मुखरित किया और अंतर्राष्ट्रीय विवाचन न्यायालय की स्थापना हुई।
 
[[प्रथम विश्वयुद्ध|प्रथम महायुद्ध]] के पश्चात् [[राष्ट्रसंघ]] (लीग ऑव नेशन्स) ने जन्म लिया। उसके मुख्य उद्देश्य थे शांति तथा सुरक्षा बनाए रखना और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में वृद्धि करना। परंतु 1937 ई. में [[जापान]] तथा [[इटली]] ने राष्ट्रसंघ के अस्तित्व को भारी धक्का पहुँचाया और अंत में 19 अप्रैल, सन् 1946 ई. को संघ का अस्तित्व ही मिट गया।
 
[[द्वितीय महायुद्ध]] के विजेता राष्ट्र ग्रेट ब्रिटेन, अमेरिका तथा सोवियत, रूस का अधिवेशन [[मास्को]] नगर में हुआ और एक छोटा-सा घोषणापत्र प्रकाशित किया गया। तदनंतर अनेक स्थानों में अधिवेशन होते रहे और एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के विषय में विचार-विनिमय होता रहा। सन् 1945 ई. में 25 अप्रैल से 26 जून तक, [[सैन फ्रांसिस्को]] नगर में एक सम्मेलन हुआ जिसमें पचास राज्यों के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। 26 जून, 1945 ई. को [[संयुक्त राष्ट्रसंघ]] तथा [[अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय]] का घोषणापत्र सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ जिसके द्वारा निम्नलिखित उद्देश्यों की घोषणा की गईः
 
*(1) अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना;