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'''[[चित्र:CSGuleri.jpg|200px|right|thumb|चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' ''' [[हिन्दी]] के कथाकार, व्यंगकार तथा निबन्धकार थे।
'''चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी'''' (१८८३ - १२ सितम्बर १९२२) [[हिन्दी]] के कथाकार, व्यंगकार तथा निबन्धकार थे।
 
== जीवनी ==
मूलतः [[हिमाचल प्रदेश]] के गुलेर गाँव के वासी ज्योतिर्विद महामहोपाध्याय पंडित शिवराम शास्त्री राजसम्मान पाकर [[जयपुर]] ([[राजस्थान]]) में बस गए थे। उनकी तीसरी पत्नी लक्ष्मीदेवी ने सन् 1883 में चन्द्रधर को जन्म दिया। घर में बालक को [[संस्कृत भाषा]], [[वेद]], [[पुराण]] आदि के अध्ययन, पूजा-पाठ, संध्या-वंदन तथा धार्मिक कर्मकाण्ड का वातावरण मिला और मेधावी चन्द्रधर ने इन सभी संस्कारों और विद्याओं आत्मसात् किया। आगे चलकर उन्होंने [[अंग्रेज़ी]] शिक्षा भी प्राप्त की और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होते रहे। [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] से एफ. ए. (प्रथम श्रेणी में द्वितीय और प्रयाग विश्वविद्यालय से बी. ए. (प्रथम श्रेणी में प्रथम) करने के बाद चाहते हुए भी वे आगे की पढ़ाई परिस्थितिवश जारी न रख पाए हालाँकि उनके स्वाध्याय और लेखन का क्रम अबाध रूप से चलता रहा। बीस वर्ष की उम्र के पहले ही उन्हें जयपुर की वेधशाला के जीर्णोद्धार तथा उससे सम्बन्धित शोधकार्य के लिए गठित मण्डल में चुन लिया गया था और कैप्टन गैरेट के साथ मिलकर उन्होंने "द जयपुर ऑब्ज़रवेटरी एण्ड इट्स बिल्डर्स" शीर्षक [[अँग्रेज़ी]] ग्रन्थ की रचना की।
[[चित्र:CSGuleri.jpg|150px|right|thumb|चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी']]
मूलतः [[हिमाचल प्रदेश]] के गुलेर गाँव के वासी ज्योतिर्विद महामहोपाध्याय पंडित शिवराम शास्त्री राजसम्मान पाकर जयपुर (राजस्थान) में बस गए थे। उनकी तीसरी पत्नी लक्ष्मीदेवी ने सन् 1883 में चन्द्रधर को जन्म दिया। घर में बालक को [[संस्कृत भाषा]], [[वेद]], पुराण आदि के अध्ययन, पूजा-पाठ, संध्या-वंदन तथा धार्मिक कर्मकाण्ड का वातावरण मिला और मेधावी चन्द्रधर ने इन सभी संस्कारों और विद्याओं आत्मसात् किया। आगे चलकर उन्होंने [[अंग्रेज़ी]] शिक्षा भी प्राप्त की और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होते रहे। [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] से एफ. ए. (प्रथम श्रेणी में द्वितीय और प्रयाग विश्वविद्यालय से बी. ए. (प्रथम श्रेणी में प्रथम) करने के बाद चाहते हुए भी वे आगे की पढ़ाई परिस्थितिवश जारी न रख पाए हालाँकि उनके स्वाध्याय और लेखन का क्रम अबाध रूप से चलता रहा। बीस वर्ष की उम्र के पहले ही उन्हें जयपुर की वेधशाला के जीर्णोद्धार तथा उससे सम्बन्धित शोधकार्य के लिए गठित मण्डल में चुन लिया गया था और कैप्टन गैरेट के साथ मिलकर उन्होंने "द जयपुर ऑब्ज़रवेटरी एण्ड इट्स बिल्डर्स" शीर्षक अँग्रेज़ी ग्रन्थ की रचना की।
 
अपने अध्ययन काल में ही उन्होंने सन् 1900 में जयपुर में नगरी मंच की स्थापना में योग दिया और सन् 1902 से मासिक पत्र ‘समालोचक’ के सम्पादन का भार भी सँभाला। प्रसंगवश कुछ वर्ष काशी की [[नागरी प्रचारिणी सभा]] के सम्पादक मंडल में भी उन्हें सम्मिलित किया गया। उन्होंने देवी प्रसाद ऐतिहासिक पुस्तकमाला और सूर्य कुमारी पुस्तकमाला का सम्पादन किया और नागरी प्रचारिणी पुस्तकमाला और सूर्य कुमारी पुस्तकमाला का सम्पादन किया और नागरी प्रचारिणी सभा के सभापति भी रहे।
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== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.bharatdarshan.co.nz/issue/48/guleri-visheshank-2014.html चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' विशेषांक] (भारत दर्शन, जुलाई-अगस्त २०१४)
* [http://www.gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A7%E0%A4%B0_%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE_%27%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80%27 गद्य कोश पर चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' की रचनाएँ]
* [http://www.srijangatha.com/september/sansmaran.guleriji.sep.htm कथा साहित्य के मसीहा थे गुलेरी जी] (डॉ॰ प्रत्यूष गुलेरी )
* [http://rachanakar.blogspot.com/2009/05/blog-post_17.html कछुआ धर्म] - चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का व्यंग्य
* [http://nirmal-anand.blogspot.com/2007/09/blog-post_15.html मारेसि मोहिं कुठाँउ] - गुलेरी जी का एक लेख
 
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[[श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन]]