"पारिभाषिक शब्दावली": अवतरणों में अंतर

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:"पारिभाषिक शब्द ऐसे शब्दों को कहते हैं जो सामान्य व्यवहार की भाषा के शब्द न होकर [[भौतिकी]], [[रसायन]], [[प्राणिविज्ञान]], [[दर्शन]], [[गणित]], [[इंजीनियरी]], [[विधि]], [[वाणिज्य]], [[अर्थशास्त्र]], [[मनोविज्ञान]], [[भूगोल]] आदि ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों के विशिष्ट शब्द होते हैं और जिनकी अर्थ सीमा सुनिश्चित और परिभाषित होती है। क्षेत्र विशेष में इन शब्दों का विशिष्ट अर्थ होता है।''
 
[[चैम्बर्स टैक्नीकल डिक्शनरी]] की भूमिक में एक स्थान पर स्पष्ट लिखा है-
 
":....पारिभाषिक शब्द वास्तव में विशेषताओं और तकनीज्ञों द्वारा अपने विचारों को ठीक-ठाक लिखने के लिए गृहीत, अनूदित या आविष्कृत प्रतीक हैं।''
 
== इतिहास ==
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मध्यकाल की नाममालाओं की परम्परा के बाद पहला शब्दावली संकलन का कार्य आदम ने १८२९ में 'हिन्दवी भाषा का कोश' शीर्षक से तैयार किया जिसमें २०,००० शब्द थे। तद्भव तथा देशज शब्दों को प्रधानता दी गई। आदम साहब पहले व्यक्ति थे जिन्होंने लोक से बोलचाल के शब्द संगृहीत किये. आदम से पूर्व गिलक्राइस्ट, कर्कपैट्रिक, विलियम हंटर, शेक्सपियर, रॉबक के कोश और बाद में फ़ैलन, येट, डंकर फ़ोर्ब्स, थॉमसन तथा जॉन प्लाट्स के कार्य उल्लेखनीय हैं। इनमें से फ़ैलन, थॉमसन तथा जॉन प्लाट्स के कार्य महत्त्वपूर्ण हैं। थॉमसन के संकलन में शब्दसंख्या ३०,००० है, फ़ैलन के कोश में १२१६ पृष्ठ (रायल क्टेव) हैं। प्लाट्स के कोश का पूरा नाम है - "'ए डिक्शनरी आफ़ उर्दू, क्लासिकल हिंदी ऐंड इंगलिश" (१८७४) जिसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं:
 
*(१) शब्दों की व्युत्पत्ति पर प्रकाश तथा
*(२) समान वर्तनी के अलग-अलग स्रोतों से आये शब्दों की अलग-अलग प्रविष्टियाँ,
 
*(३) अकर्मक तथा सकर्मक क्रियाओं का उल्लेख,
(२) समान वर्तनी के अलग-अलग स्रोतों से आये शब्दों की अलग-अलग प्रविष्टियाँ,
*(४) साहित्येतर शब्दों का संकलन.
 
(३) अकर्मक तथा सकर्मक क्रियाओं का उल्लेख,
 
(४) साहित्येतर शब्दों का संकलन.
 
भारतीयों द्वारा बनाये गये कोशों में जिन दो कोशों का सर्वाधिक प्रचार-प्रसार हुआ, वे हैं - "श्रीधर भाषा कोश' (सन् १८९४), श्रीधर त्रिपाठी, लखनऊ, पृष्ठ सं. ७४४ तथा 'हिन्दी शब्दार्थ पारिजात' (सन् १९१४), द्वारका प्रसाद चतुर्वेदी, इलाहाबाद। पहले कोश में लगभग २५,००० शब्द संख्या है जबकि दूसरे में ब्रजभाषा-अवधी आदि विभाषाओं के शब्दों की पर्याप्त संख्या रहने के कारण शब्द संख्या अधिक है। अनुमान किया जा सकता है कि २०वी शताब्दी के प्रारंभ तक शब्द संकलन ५०,००० तक पहुँच गया।
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== हिन्दी का शब्द-सामर्थ्य ==
किस भाषा को विकसित-विकासशील माना जाए और किसको नहीं, इसके लिए प्रो॰ फर्गुसन ने बड़ी गहराई से विचार किया है। लिखित रूप में प्राप्त जिस भाषा में निम्न्ललिखित विशेषताएँ हों वह भाषा विकसित मानी जाएगी -
 
*(क) आपसी पत्र-व्यवहार होता हो,
 
*(ख) पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होती हों,
 
*(ग) मौलिक पुस्तकों का लेखन कार्य होता हो,
 
इस कसौटी पर हिन्दी बिल्कुल खरी उतरती है। हाँ, उन्होंने जो आगे की अवस्थाएँ स्वीकार की हैं कि
 
*(१) उसमें वैज्ञानिक साहित्य निरन्तर प्रकाशित होता रहे तथा
 
*(२) अन्य भाषाओं में हुए वैज्ञानिक कार्य का अनुवाद तथा सार संक्षेप प्रकाशित होता रहे
 
उस दृष्टि से अभी हिन्दी विकासशील भाषा है और भविष्य में उसमें अनन्त संभावनाएँ निहित हैं।
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हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि तथा विचारक [[सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन]] की मान्यता है कि "भाषा कल्पवृक्ष है। जो उससे आस्थापूर्वक माँगा जाता है, भाषा वह देती है। उससे कुछ माँगा ही न जाए क्योंकि वह पेड़ से लटका हुआ नहीं दीख रहा है, तो कल्पवृक्ष भी कुछ नहीं देता।"
 
बीसवीं शताब्दी के लब्धप्रतिष्ठ भाषाविद्, [[ब्लूमफ़ील्ड]] के अनुसार
:"भाषा की शक्ति अथवा सम्पत्ति रूपिमों और व्याकरणिमों में है (वाक्य प्रतिरूपों, संरचनाओं और स्थानापत्तियों में) है। रूपिमों और व्याकरणिमों की संख्या भाषाविशेष में हज़ारों में पहुँचती है। यह साधारणतया माना जाता है कि भाषा सम्पत्ति विभिन्न प्रयुक्त शब्दों पर निर्भर है किन्तु यह संख्या अनिश्चित है क्योंकि रूपीय संरचनाओं के सादृश्य पर शब्द मनचाहे ढंग से बनते रहते हैं।" (भाषा, पृ। ३३२)
 
वस्तुत: भाषा मूलत: अभिव्यक्ति की संरचना तथा शब्दावली का संयुक्त रूप है जो परस्पर संगुम्फित है। शब्दावली आती-जाती, नई बनती रहती है, पुराने शब्दों में नवीन अर्थ भरते जाते हैं, जैसे आज अधिक्रम, अधिवक्ता, अभिलेख, अभ्यर्थी, आख्यापन से सर्वथा नवीन अर्थों की अभिव्यंजना होती है। हिन्दी की आक्षरिक संरचना भी बड़ी सम्पन्न है। आक्षरिक साँचों में पर्याप्त रिक्त स्थान होने के कारण विकास की अभूतपूर्व क्षमता स्पष्ट होती है। 'व्यंजन स्वर-व्यंजन दीर्घ स्वर' साँचे में यदि मात्र 'क्' तथा 'ल्' व्यंजन क्रमश: लिए जाएँ तो २१ संभव शब्द बन सकते हैं, जिनमें से १९ स्थान रिक्त पड़े हुए थे। इन रिक्त स्थानों में से चार स्थानों पर क़िला, क़िले, कुली, किलो शब्द बड़ी आसानी से खप गये।