"क्रमचय-संचय": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
 
क्रमचय-संचय से संबंधित सरल प्रश्न काफी प्राचीन काल से ही उठते और हल किये जाते रहे हैं। ६ठी शताब्दी ईसा पूर्व में [[भारत]] के महान आयुर्विज्ञानी [[सुश्रुत]] ने [[सुश्रुतसंहिता]] में कहा है कि ६ भिन्न स्वादों के कुल ६३ संचय (कंबिनेशन) बनाये जा सकते हैं (एक बार में केवल एक स्वाद लेकर, एकबार में दो स्वाद लेकर ... इस प्रकार कुल 26-1=25 समुच्चय बन सकते हैं।) ८५० ईसवी के आसपास भारत के ही एक दूसरे महान गणितज्ञ [[महावीर (गणितज्ञ)]] ने [[क्रमचय|क्रमचयों]] एवं [[संचय|संचयों]] की संख्या निकालने के लिये एक सामान्यीकृत सूत्र बताया। भारतीय गणितज्ञों ने ही [[द्विपद गुणांक]] निकाले जो आगे चलकर [[पास्कल त्रिकोण]] नाम से प्रसिद्ध हुए।
 
बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में क्रमचय-संचय के अध्ययन ने त्वरित गति प्राप्त की और इस विषय के दर्जनों जर्नल अस्तित्व में आये तथा इस विषय पर कई [[संगोष्ठी|संगोष्ठियाँ]] हुईँ।
 
[[श्रेणी:गणित]]
 
== इन्हें भी देखें ==