"सामाजिक पूँजी": अवतरणों में अंतर

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'''सामाजिक पूँजी''' (social capital) के विचार को नये सिरे से प्रासंगिक बनाने का श्रेय अमेरिकी समाज-विज्ञान को जाता है। फ़्रांसीसी समाजशास्त्री [[एमील दुर्ख़ाइम]] के समय से ही इससे मिलती- जुलती धारणाओं पर ग़ौर किया जाता रहा है, पर बीसवीं सदी के आख़िरी दशक में अमेरिकी समाज-विज्ञान के हलकों ने इस पर नये लहजे में बहस शुरू की। अमेरिकी समाज में नागरिक संस्थाओं की गिरती हुई सदस्यता से पैदा हुए सरोकारों की इस बहस के पीछे मुख्य भूमिका रही। समाज वैज्ञानिकों ने देखा कि महामंदी और विश्वयुद्ध के बाद पैदा हुई पीढ़ी के तिरोहित हो जाने और मनोरंजन के इलेक्ट्रॉनिक साधनों के सहारे घर की दुनिया में कैद हो जाने की प्रवृत्ति के कारण अमेरिका में सामाजिक संस्थाओं की गतिविधियाँ ठप पड़ गयी हैं। इसके प्रति अनुक्रिया करते हुए रॉबर्ट पुटनैम ने सामाजिक पूँजी की अवधारणा को टटोला। दुर्ख़ाइम के समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में जो सूत्रीकरण सामाजिक एकजुटता और उसके मैकेनेकिल और ऑर्गनिक आयामों के रूप में उभरता है, उसी से मिलता-जुलता परिप्रेक्ष्य पुटनैम के विमर्श में दिखाई पड़ता है। सामाजिक पूँजी के सिद्धांत के मर्म में आग्रह यह है कि सामाजिक नेटवर्कों के महत्त्व को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि सामाजिक संपर्क व्यक्तियों और उनके समूहों की उत्पादकता को प्रभावित करते हैं। लोग विभिन्न मकसदों से अपने सम्पर्कों और रिश्तों को एक महत्त्वपूर्ण संसाधन की तरह इस्तेमाल करते हैं। वे जैसे ही किसी समस्या में फँसते हैं या उनके जीवन में कोई परिवर्तन होता है, वे दोस्तों, नाते-रिश्तों और परिजनों को आवाज़ देते हैं। लोगों का समूह आपस में जुड़ कर अपने समान हितों को साधने का प्रयास करता है। इसी बात को व्यापक धरातल पर इस प्रकार कहा जा सकता है कि सामाजिक संगठन के सभी रूप अंतर्वैयक्तिक संबंधों के धागों से बँधे होते हैं।