"नील हरित शैवाल": अवतरणों में अंतर
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'''नील हरित शैवाल''' ([[अंग्रेज़ी]]:ब्लू-ग्रीन ऐल्गी, सायनोबैक्टीरिया) एक [[जीवाणु]] फायलम होता है, जो [[प्रकाश संश्लेषण]] से ऊर्जा उत्पादन करते हैं। यहां जीवाणु के नीले रंग के कारण इसका नाम सायनो ([[यूनानी]]:κυανός {काएनोस} अर्थात नीला) से पड़ा है।
'''नील हरित काई''' वायुमंडलीय
==नील हरित काई के उपयोग से लाभ==
*(५) लगातार 3-4 वर्षों तक यदि धान के उसी खेत में नील हरित काई का उपयोग किया जाये तो आने वाले कइ्र्र सीजन तक पुनः उपचार करने की आवश्यकता नहीं होता साथ में इस काई के उपयोग का लाभ आगामी उन्हारी फसल पर भी देखा गया है।
6. जैविक खाद के रूप में नील हरित काई के उपयोग के फलस्वरूप अतिरिक्त उपज मिलने से करीब 400 से 500 रू. प्रति हैक्टर तक शुद्ध आमदनी होती है ।▼
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==धान के खेत में नील हरित काई का उपचार==
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इस जैव उर्वरक के उत्पादन लेने के पहले कुछ विशेष बातों पर ध्यान देना आवश्यक है जो निम्नलिखित है अन्यथा उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
*1. छाया से दूर, खुला स्थान
*2. मातृ कल्चर
*3. सिंगल सुपरफास्फेट
*4. कीटनाशक दवाई जैसे मेलाथियान
*5. आवश्यकतानुसार चूना
*6. पास ही पानी का खेत
यद्यपि नील हरित काई का उत्पादन कई प्रकार से लिया जाता है, जैसे लोहे की ट्रे, पालीथीन चादरों से ढके कच्चे गड्ढों में, ईटों व सीमेंट से बने पक्के गड्ढों में किन्तु आर्थिक रूप से पिछड़े छोटे व सीमांत किसानों के लिये ये उपरोक्त सभी तरीके खर्चीले होते हैं। ऐसे लोगों के लिये [[इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय]] स्थित मृदा विज्ञान विभाग वैज्ञानिक द्वारा एक विशेष ग्रामीण उत्पादन तकनीक का विकास किया है जिसमें न ही पालीथीन चादरों की आवश्यकता होती है और न ही ईंट सीमेंट की। यह ग्रामीण उत्पादन तकनीकी विधि, बनाने में, उत्पादन लेने में तथा उसके रख रखाव में अत्यंत सरल, सुलभ और सभी के आर्थिक स्थिति के मुताबिक है। यहां के मौसम और जलवायु के अनुसार बताई गई उत्पादन विधि से इस कल्चर का उत्पादन फरवरी माह से जून के आखरी सप्ताह तक अच्छी तरह किया जा सकता है।
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== संदर्भ ==
<references />
== बाहरी सूत्र ==
{{commonscat|Cyanobacteria|सायनोबैक्टीरिया}}
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