"नील हरित शैवाल": अवतरणों में अंतर

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'''नील हरित शैवाल''' ([[अंग्रेज़ी]]:ब्लू-ग्रीन ऐल्गी, सायनोबैक्टीरिया) एक [[जीवाणु]] फायलम होता है, जो [[प्रकाश संश्लेषण]] से ऊर्जा उत्पादन करते हैं। यहां जीवाणु के नीले रंग के कारण इसका नाम सायनो ([[यूनानी]]:κυανός {काएनोस} अर्थात नीला) से पड़ा है।
 
'''नील हरित काई''' वायुमंडलीय नत्रजन का [[नाइट्रोजन यौगीकरण|नत्रजन का यौगीकरण]] कर, [[धान]] के फसल को आंशिक मात्रा में [[नत्रजन]] की पूर्ति करता है। यह जैविक खाद नत्रजन धारीनत्रजनधारी [[रासायनिक उर्वरक]] का सस्ता व सुलभ विकल्प है जो धान के फसल को, न सिर्फ 25-30 किलो ग्राम नत्रजन प्रति हैक्टेयर की पूर्ति करता है, बल्कि उस धान के खेत में नील हरित काई के अवशेष से बने सेन्द्रीय खाद के द्वारा उसकी गुणवत्ता व उर्वरता कायम रखने में मददगार साबित होती है।
 
==नील हरित काई के उपयोग से लाभ==
1.*(१) नील हरित काई एक जैविक खाद है जिसे धान उत्पादक किसान अपने स्तर पर आसानी से तैयार कर सकते हैं ।
 
2.*(२) नील हरित काई सामान्य रूप से धान के फसल को करीब 25 से 30 किलो ग्राम प्रति हैक्टेयर नत्रजन की पूर्ति करता है ।
 
3.*(३) यह काई उपचार के पश्चात् प्रत्येक सीजन में अपने अवशेषों के द्वारा करीब 800 से 1200 किलो ग्राम तक सेन्द्रीय खाद प्रति हैक्टर की पूर्ति करता है जिसकी वजह से उसे खेत के मिट्टी की गुणवत्ता और उपजाऊ क्षमता कायम रहती है ।
 
4.*(४) नील हरित काई के द्वारा कुछ ऐसे रासायनिक पदार्थ स्त्रावित होता है जिससे बीजों का अंकुरण और फसलों में सामान रूप से वृद्धि होती है। 5. लगातार 3-4 वर्षों तक यदि धान के उसी खेत में नील हरित काई का उपयोग किया जाये तो आने वाले कइ्र्र सीजन तक पुनः उपचार करने की आवश्यकता नहीं होता साथ में इस काई के उपयोग का लाभ आगामी उन्हारी फसल पर भी देखा गया है।
 
*(५) लगातार 3-4 वर्षों तक यदि धान के उसी खेत में नील हरित काई का उपयोग किया जाये तो आने वाले कइ्र्र सीजन तक पुनः उपचार करने की आवश्यकता नहीं होता साथ में इस काई के उपयोग का लाभ आगामी उन्हारी फसल पर भी देखा गया है।
6. जैविक खाद के रूप में नील हरित काई के उपयोग के फलस्वरूप अतिरिक्त उपज मिलने से करीब 400 से 500 रू. प्रति हैक्टर तक शुद्ध आमदनी होती है ।
 
6.*(६) जैविक खाद के रूप में नील हरित काई के उपयोग के फलस्वरूप अतिरिक्त उपज मिलने से करीब 400 से 500 रू. प्रति हैक्टर तक शुद्ध आमदनी होती है ।
 
==धान के खेत में नील हरित काई का उपचार==
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इस जैव उर्वरक के उत्पादन लेने के पहले कुछ विशेष बातों पर ध्यान देना आवश्यक है जो निम्नलिखित है अन्यथा उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
 
*1. छाया से दूर, खुला स्थान
 
*2. मातृ कल्चर
 
*3. सिंगल सुपरफास्फेट
 
*4. कीटनाशक दवाई जैसे मेलाथियान
 
*5. आवश्यकतानुसार चूना
 
*6. पास ही पानी का खेत
 
यद्यपि नील हरित काई का उत्पादन कई प्रकार से लिया जाता है, जैसे लोहे की ट्रे, पालीथीन चादरों से ढके कच्चे गड्ढों में, ईटों व सीमेंट से बने पक्के गड्ढों में किन्तु आर्थिक रूप से पिछड़े छोटे व सीमांत किसानों के लिये ये उपरोक्त सभी तरीके खर्चीले होते हैं। ऐसे लोगों के लिये [[इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय]] स्थित मृदा विज्ञान विभाग वैज्ञानिक द्वारा एक विशेष ग्रामीण उत्पादन तकनीक का विकास किया है जिसमें न ही पालीथीन चादरों की आवश्यकता होती है और न ही ईंट सीमेंट की। यह ग्रामीण उत्पादन तकनीकी विधि, बनाने में, उत्पादन लेने में तथा उसके रख रखाव में अत्यंत सरल, सुलभ और सभी के आर्थिक स्थिति के मुताबिक है। यहां के मौसम और जलवायु के अनुसार बताई गई उत्पादन विधि से इस कल्चर का उत्पादन फरवरी माह से जून के आखरी सप्ताह तक अच्छी तरह किया जा सकता है।
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== संदर्भ ==
<references />
 
== बाहरी सूत्र ==
{{commonscat|Cyanobacteria|सायनोबैक्टीरिया}}