"सांख्यकारिका": अवतरणों में अंतर

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सांख्यकारिका का आरम्भिक श्लोक इस प्रकार है-
:; ''दुःखत्रयाऽभिघाताज्जिज्ञासा तदभिघातके हेतौ ।''
:; ''दुष्टे साऽपार्था चेन्नैकान्तात्यन्ततोऽभावात ॥''
: ''(तीन प्रकार के दुख से (प्राणी) पीड़ित रहते हैम।हैं। अतः उसके अभिघातक (विनाशक) कारण को जानने की इच्छा करनी चाहिये। "दृष्ट (प्रत्यक्ष-लौकिक) उपायों से ही उस जिज्ञासा की पूर्ति हो जायेगी?" नहीं, (दृष्ट उपायों से) निश्चित रूप से और सदा के लिये दुःखों का निवारण नहीं होता।'')
 
== बाहरी कड़ियाँ ==