"परमानंद दास": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो बॉट: विराम चिह्नों के बाद खाली स्थान का प्रयोग किया। |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1:
'''परमानन्ददास''' (जन्म संवत् १६०६) [[वल्लभ संप्रदाय]] ([[पुष्टिमार्ग]]) के आठ कवियों ([[अष्टछाप]] कवि) में एक कवि जिन्होने भगवान [[श्री कृष्ण]] की विभिन्न लीलाओं का अपने पदों में वर्णन किया। इनका जन्म काल संवत १६०६ के आसपास है। अष्टछाप के कवियों में प्रमुख स्थान रखने वाले परमानन्ददास का जन्म [[कन्नौज]] ([[उत्तर प्रदेश]]) में एक निर्धन कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके ८३५ पद "परमानन्दसागर" में हैं।
अष्टछाप में महाकवि [[सूरदास]] के बाद आपका ही स्थान आता है। इनके दो ग्रंथ प्रसिद्ध हैं। ‘ध्रुव चरित्र’ और ‘दानलीला’। इनके अतिरिक्त ‘परमानन्द सागर’ में इनके ८३५ पद संग्रहीत हैं। इनके पद बड़े ही मधुर, सरस और गेय हैं।<ref>{{cite book |last=सिंह |first=डॉ॰राजकुमार|title= विचार विमर्श|year=जनवरी २००७|publisher=सारंग प्रकाशन, सारंग विहार, रिफायनरी नगर
|location=मथुरा (उत्तर प्रदेश)- २८१००१|id= |page=१२४ |accessday= २६|accessmonth= अप्रैल|accessyear=२००९}}</ref>
== परमानंद दास जी के कुछ पद ==
:यह मांगो गोपीजन वल्लभ।
:मानुस जन्म और हरि सेवा, ब्रज बसिबो दीजे मोही सुल्लभ ॥१॥▼
:श्री वल्लभ कुल को हों चेरो, वल्लभ जन को दास कहाऊं।▼
▲मानुस जन्म और हरि सेवा, ब्रज बसिबो दीजे मोही सुल्लभ ॥१॥
:श्री जमुना जल नित प्रति न्हाऊं, मन वच कर्म कृष्ण रस गुन गाऊं ॥२॥▼
:श्री भागवत श्रवन सुनो नित, इन तजि हित कहूं अनत ना लाऊं।▼
▲श्री वल्लभ कुल को हों चेरो, वल्लभ जन को दास कहाऊं।
:‘परमानंद दास’ यह मांगत, नित निरखों कबहूं न अघाऊं ॥३॥ ▼
▲श्री जमुना जल नित प्रति न्हाऊं, मन वच कर्म कृष्ण रस गुन गाऊं ॥२॥
▲श्री भागवत श्रवन सुनो नित, इन तजि हित कहूं अनत ना लाऊं।
▲‘परमानंद दास’ यह मांगत, नित निरखों कबहूं न अघाऊं ॥३॥
----
:आज दधि मीठो मदन गोपाल।
:भावे मोही तुम्हारो झूठो, सुन्दर नयन विशाल ॥▼
:बहुत दिवस हम रहे कुमुदवन, कृष्ण तिहारे साथ।▼
▲भावे मोही तुम्हारो झूठो, सुन्दर नयन विशाल ॥
:एसो स्वाद हम कबहू न देख्यो सुन गोकुल के नाथ ॥▼
:आन पत्र लगाए दोना, दीये सबहिन बाँट।▼
▲बहुत दिवस हम रहे कुमुदवन, कृष्ण तिहारे साथ।
:जिन नही पायो सुन रे भैया, मेरी हथेली चाट ॥▼
:आपुन हँसत हँसावत औरन, मानो लीला रूप।▼
▲एसो स्वाद हम कबहू न देख्यो सुन गोकुल के नाथ ॥
:परमानंद प्रभु इन जानत हों, तुम त्रिभुवन के भूप॥▼
▲आन पत्र लगाए दोना, दीये सबहिन बाँट।
▲जिन नही पायो सुन रे भैया, मेरी हथेली चाट ॥
▲आपुन हँसत हँसावत औरन, मानो लीला रूप।
▲परमानंद प्रभु इन जानत हों, तुम त्रिभुवन के भूप॥
----
:माई मीठे हरि जू के बोलना।
:पांय पैंजनी रुनझुन बाजे, आंगन आंगन डोलना ॥▼
:काजर तिलक कंठ कचुलामल, पीतांबर को चोलना।▼
:‘परमानंद दास’ की जीवनी, गोपि झुलावत झोलना ॥▼
{{अष्टछाप के कवि}}▼
▲पांय पैंजनी रुनझुन बाजे, आंगन आंगन डोलना ॥
{{भक्ति काल के कवि}}
== संदर्भ ==
▲काजर तिलक कंठ कचुलामल, पीतांबर को चोलना।
<references/>
▲‘परमानंद दास’ की जीवनी, गोपि झुलावत झोलना ॥
▲{{अष्टछाप के कवि}}
[[श्रेणी:हिन्दी साहित्य]]
[[श्रेणी:फ़र्रूख़ाबाद के हिन्दी कवि]]
[[श्रेणी: हिन्दी साहित्यकार]]
[[श्रेणी:हिन्दी कवि]]
[[श्रेणी:भक्तिकाल]]
|