"समराङ्गणसूत्रधार": अवतरणों में अंतर
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समराङ्गणसूत्रधार भारतीय वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ज्ञानकोशीय ग्रन्थ है जिसकी रचना धार के परमार राजा भोज (1000–1055 ई) ने की थी।
परिचय
इस ग्रन्थ में ८३ अध्याय हैं जिनमें नगर-योजना, भवन शिल्प, मंदिर शिल्प, मूर्तिकला तथा मुद्राओं सहित यंत्रों के बारे में (अध्याय ३१, जिसका नाम 'यन्त्रविधान' है) वर्णन है। यंत्रविधान के निम्नलिखित श्लोक 'विमान' के सम्बन्ध में हैं-
- लघुदारुमयं महाविहङ्गं दृढसुश्लिष्टतनुं विधाय तस्य
- उदरे रसयन्त्रमादधीत ज्वलनाधारमधोऽस्य चातिपूर्णम्॥ ९५
- तत्रारूढ: पूरुषस्तस्य पक्षद्वन्द्वोच्चालप्रोज्झितेनानिलेन
- सुप्तस्वान्त: पारदस्यास्य शक्त्या चित्रं कुर्वन्नम्बरे याति दूरम्॥ ९६
- इत्थमेव सुरमन्दिरतुल्यं सञ्चलत्यलघु दारुविमानम्
- आदधीत विधिना चतुरोऽन्तस्तस्य पारदभृतान् दृढकुम्भान्॥ ९७
- अय:कपालाहितमन्दवह्निप्रतप्ततत्कुम्भभुवा गुणेन
- व्योम्नो झगित्याभरणत्वमेति सन्तप्तगर्जद्ररसरागशक्त्या॥ ९८