"कात्यायन": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति 2:
धर्मग्रंथों से जिन '''कात्यायनों''' का परिचय मिलता है, उनमें तीन प्रधान हैं-
 
* [[कात्यायन (विश्वामित्रवंशीय) कात्यायन]] जिन्होंने श्रोत, गृह्य और प्रतिहार सूत्रों की रचना की।
* [[गोमिलपुत्र कात्यायन (गोमिलपुत्र)]] जिन्होंने छंदोपरिशिष्टकर्मप्रदीप की रचना की।
* सोमदत्त के पुत्र [[वररुचि कात्यायान (वररुचि)]], जो [[पाणिनि|पाणिनीय]] सूत्रों के प्रसिद्ध वार्तिककार हैं।
 
==अन्य कात्यायन==
पंक्ति 11:
[[सम्राट अशोक|अशोक]] के [[शिलालेख]] में वररुचि का उल्लेख है। प्राकृतप्रकाशकार वररुचि का गोत्र भी यद्यपि कात्यायन था, इसी एक आधार पर वार्तिककार और प्राकृतप्रकाशकार एक ही व्यक्ति नहीं माने जा सकते, क्योंकि अशोक के लेख की प्राकृत वररुचि की प्राकृत स्पष्ट ही नवीन मालूम पड़ती है। फलत: अशोक के पूर्ववर्ती कात्यायन वररुचि वार्तिककार हैं और अशोक के परवर्ती वररुचि प्राकृतप्रकाशकार। मद्रास से जो "चतुर्भाणी" प्रकाशित हुई है, उसमें "उभयसारिका" नामक भाण को वररुचिकृत नहीं है, क्योंकि वार्तिककार वररुचि "तद्धितप्रिय" नाम से प्रसिद्ध रहे हैं और "उभयसारिका" में तद्धितों के प्रयोग अति अल्प मात्रा में हैं। संभवत: यह वररुचि कोई अन्य व्यक्ति है।
 
हुयेनत्सांग ने बुद्धनिर्वाण से प्राय: 300३०० वर्ष बाद हुए [[पालि]] वैयाकरण जिस कात्यायन की अपने भ्रमण-वृत्तांत में चर्चा की है, वह कात्यायन भी वार्तिककार से भिन्न व्यक्ति है। यह कात्यायन एक [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] आचार्य था जिसने "अभिधर्मज्ञानप्रस्थान" नामक बौद्धशास्त्र की रचना की है।
 
कात्याययन नाम का एक प्रधान [[जैन]] स्थावर भी हुआ है। आफ़्रेक्ट की हस्तलिखित ग्रंथसूची में वररुचि और कात्यायन के बनाए ग्रंथों की चर्चा की गई है। इन ग्रंथों में कितने वार्तिककार कात्यायन प्रणीत हैं, इसका निर्णय करना कठिन है।