"गुरुत्वाकर्षण": अवतरणों में अंतर
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इस पर लीलावती ने पूछा यह कैसे संभव है। तब भास्कराचार्य सिद्धान्त की बात कहते हैं कि वस्तुओं की शक्ति बड़ी विचित्र है।
: ''मरुच्लो भूरचला स्वभावतो यतो
: विचित्रावतवस्तु शक्त्य:
आगे कहते हैं-
: ''आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत् खस्थं
: ''गुरुस्वाभिमुखं स्वशक्तत्या।
: ''आकृष्यते तत्पततीव भाति
: ''समेसमन्तात् क्व पतत्वियं
अर्थात् पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है। पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थों को अपनी ओर खींचती है और आकर्षण के कारण वह जमीन पर गिरते हैं। पर जब आकाश में समान ताकत चारों ओर से लगे, तो कोई कैसे गिरे? अर्थात् आकाश में ग्रह निरावलम्ब रहते हैं क्योंकि विविध ग्रहों की गुरुत्व शक्तियाँ संतुलन बनाए रखती हैं।
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देखिये '''[[केप्लर की ग्रहीय गति के नियम]]'''
'''केप्लर का प्रथम नियम''': (कक्षाओं का नियम) -सभी ग्रह [[सूर्य]] के चारों ओर [[दीर्घवृत्त|दीर्घवृत्ताकार]] कक्षाओं मे चक्कर लगते हैं तथा सूर्य उन कक्षाओं के [[फोकस]] पर होता है।
द्वितीय नियम - किसी भी ग्रह को सुर्य से मिलने वलि रेखा समान समय मे समन छेत्रफल पार करती है। अर्थात प्रत्येक ग्रह की कछीय चाल नियत रहती है।▼
▲'''द्वितीय नियम''' - किसी भी ग्रह को
तृतीय नियम :परिक्रमण कालो का नियम- प्रत्येक ग्रह का सुर्य का चरो ओर परिक्रमण काल का वर्ग उसकी दीर्घ वृत्ताकार ▼
▲'''तृतीय नियम''' : (परिक्रमण
=== न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम ===
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उपर्युक्त नियम को सूत्र रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है : मान लिया m<sub>1</sub> और संहति वाले m<sub>2</sub> दो पिंड परस्पर d दूरी पर स्थित हैं। उनके बीच कार्य करनेवाले बल f का संबंध होगा :
यहाँ '''G''' एक समानुपाती नियतांक है जिसका मान सभी पदार्थों के लिए एक जैसा रहता है। इसे [[गुरुत्व नियतांक]] (Gravitational Constant) कहते हैं। इस नियतांक की [[विमा]] (dimension) है और आंकिक मान प्रयुक्त इकाई पर निर्भर करता है। सूत्र (१) द्वारा किसी पिंड पर पृथ्वी के कारण लगनेवाले आकर्षण बल की गणना की जा सकती है।
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