"स्वनविज्ञान": अवतरणों में अंतर

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'''स्वानिकी''' या '''स्वनविज्ञान''' (Phonetics), [[भाषाविज्ञान]] की वह शाखा है जिसके अंतर्गत मानव द्वारा बोली जाने वाली ध्वनियों का अध्ययन किया जाता है। यह बोली जाने वाली ध्वनियों के भौतिक गुण, उनके शारीरिक उत्पादन, श्रवण ग्रहण और तंत्रिका-शारीरिक बोध की प्रक्रियाओं से संबंधित है।
 
==इतिहास==
स्वानिकी का अध्ययन प्राचीन [[भारत]] मे लगभग २५०० वर्ष पहले से किया जाता था, इसका प्रमाण हमें [[पाणिनि]] द्वारा ५०० ई पू मेमें रचित उनके [[संस्कृत]] के [[व्याकरण]] संबंधी ग्रंथ [[अष्टाध्यायी]] मे मिलता है, अष्टध्यायी मेजिसमे [[व्यंजन|व्यंजनों]] काके उचारण के स्थान तथा उनकीउच्चारण की संधिविधि का विस्तार से वर्णन किया गया है। आज की अधिकतर भारतीय लिपियों मे व्यंजनों का स्थान पाणिनि के वर्गीकरण पर आधारित है।
 
आधुनिक काल में स्वानिकी का अध्ययन जोशुआ स्टील (१७७९) तथा अलेक्जेण्डर बेल (१८६७) आदि के प्रयासों से आरम्भ हुआ।
 
== स्वन्विज्ञान का स्वरूप ==