"विदेश मंत्रालय (भारत)": अवतरणों में अंतर

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नीति का अर्थ है तर्क पर आधारित कार्य, जो वर्तमान और भविष्य को प्रभावित करे। इसका उद्देश्य अपनी स्थिति को उत्तरोत्तर उन्नत बनाना होता है। इस कार्य की सफलतापूर्वक पूर्ति [[विदेश नीति]] पर ही निर्भर है। किसी देश की विदेश नीति को क्रियान्वित करने का उत्तरदायित्व उस देश के विदेश विभाग पर होता है। यह सरकार के महत्वपूर्ण विभागों में से एक विभाग होता है। इसी की योग्यता पर यह निर्भर करता है कि यह किस प्रकार देश के राष्ट्रीय हितों, सम्मान और प्रतिष्ठा को बनाये रखेगा। इसी के कार्य एक देश को शान्ति अथवा युद्ध के कार्य के मार्ग पर ले जाते हैं। इन्हीं के प्रयासों से देश की आवाज अन्तर्राष्ट्रीय जगत में सुनी जा सकती है। इसका एक गलत कदम देश को अन्धकार के गर्त में ले जा सकता है। विदेश नीति का प्रभाव विश्वव्यापी होता है।
 
==भारतीय विदेश मन्त्रालय का संगठन==
स्वतन्त्रता पूर्व ब्रिटिश भारतीय सरकार का एक विदेश विभाग था। इसका सर्वप्रथम निर्माण [[वारन हेस्टिंग्स]] के काल में 1784 में किया गया था। 1842 तक यह गुप्त और राजनीतिक विभाग (Secret and Political Department) के नाम से जाना जाता था, बाद में इसे विदेश विभाग (Foreign Department) कहा जाने लगा। इसके तीन उप विभाग थे- विदेश, राजनीतिक और गृह। 1914 के पश्चात् यह विदेश और राजनीतिक विभाग (Foreign and Political Department) कहलाने लगा। 1935 के अधिनियम के परिणामस्वरूप बढ़े हुये कार्यों के कारण विदेश और राजनीतिक विभागों को अलग स्वतन्त्र विभागों में कर दिया गया। 1945 में इस विभाग को नवीन नाम दिया गया “विदेश विभाग और राष्ट्रमण्डलीय सम्बन्ध विभाग“। 1946 को अन्तरिम सरकार का कार्यभार संभालने पर नेहरू ने इस विभाग का निर्देशन अपने हाथों में लिया। मार्च 1949 में मन्त्रालय के इन दो विभागों को एक कर दिया गया तथा इसे '''विदेश मंत्रालय''' का नाम दिया गया, जिस नाम से यह आज भी जाना जाता है।