"किलाबंदी": अवतरणों में अंतर

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13वीं सदी ईसवी में [[मंगोल|मंगोलों]] ने यूरोप में मैदानी किलाबंदी की व्यवस्था को पुन: प्रचलित किया। [[तैमूर]] ने भारतवर्ष पहुँचकर [[दिल्ली]] पर आक्रमण करने के पूर्व जिस मदानी किलाबंदी की व्यवस्था कराई उसे 'पुश्तए बहाली' कहते हैं। उसने वृक्षों की डालियों तथा छप्परों से दीवारें तैयार कराईं। खाई के समक्ष भैंसों को, गरदन और पाँव बाँधकर डाल दिया। छप्पर के पीछे लगा दिए। जब भारतीय हाथियों की पंक्तियाँ आगे बढ़ी तब उसने सुरक्षा के लिए अपनी सेना की पंक्ति को सामने से खंभों की पंक्ति द्वारा सुरक्षित करा दिया। लोहे के बहुत बड़े-बड़े काँटे तैयार करवाकर पदातियों को इस आशय से दे दिए कि जब हाथी आक्रमण करें तो वे उन काँटों को हाथियों के सामने डाल दें। बंदूक तथा गोले बारूद के आविष्कार के कारण [[बाबर]] ने पानीपत के युद्ध में [[इब्राहीम लोदी]] की बहुत बड़ी सेना से टक्कर लेने के लिए जिस प्रकार किलाबंदी कराई उसके विषय में वह स्वयं लिखता है कि हमारे दाईं ओर [[पानीपत]] नगर तथा उसके मुहल्ले थे। हमारे सामने गाड़ियाँ तथा तोरें (एक प्रकार की ऊँची तिपाइयाँ) थीं, जिन्हें हमने तैयार कराया था। बाईं और तथा अन्य स्थानों पर खाइयाँ एवं वृक्ष की शाखाएँ थीं। एक एक बाण पहुँचने की दूरी तक इतना स्थान छोड़ दिया गया था कि 100-100, 200-200 अश्वारोही वहाँ से छापा मार सकें।
[[चित्र:Jerusalem Golden gate 1886.jpg|right|thumb|300px|[[येरुसलम]] की दुर्गबन्दी]]
 
[[चित्र:MoldovitaConstantinople.jpg|right|thumb|300px|[[कांस्टैंटिनोपुल]] की दुर्गबन्दी]]
[[यूरोप]] में [[नेपोलियन]] को कई स्थायी दुर्गों पर घेरा डालने का विवश होना पड़ा था किंतु चेष्टा यही होती थीं कि वह अपने स्वनिश्चित रणक्षेत्र में शत्रु को ले आए। [[फ्रीडलैंड के अभियान]] में रूसी सेनानायक काउंट बान बेनिग्सन ने [[बाल्टिक सागर]] से पृथक्‌ हो जाने पर एक शिविर में शरण ली जहाँ उसने तत्काल ही अस्थायी किलाबंदी की व्यवस्था कर ली। नेपोलियन इस अस्थायी मोर्चाबंदी का सही अनुमान न लगा सका और उसने अपने सैनिक आक्रमण के लिए भेज दिए, परंतु वे पराजित हो गए। नेपोलियन ने नए सैनिक भेजकर पुन: आक्रमण किया, किंतु अँधेरा हो जाने के कारण प्रयत्न त्याग देना पड़ा।
 
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इन नवीन गढ़बंदियों में कई बातें ध्यान में रखी गई थीं। लोहे तथा कंकड़ के अवरोधक टैंकों की गति को रोकने के लिए ही नही अपितु जलमग्न क्षेत्रों तथा जंगलों में भी पहँचने के मार्गों का सरण्मािन्‌ करने के लिए प्रयोग में लाया गया था। वायुयानों के आक्रमण से रक्षा करना भी आवश्यक समझा गया था। इसके लिये विस्तृत टेलीफोन व्यवस्था, सर्चलाइट तथा भारी तोपों को लगाने का प्रबंध किया गया था। वायुयानों द्वारा न देख जाने तथा शत्रुओं की स्थलसेना को धोखा देने के लिए छिपने की व्यवस्था करना भी महत्वपूर्ण माना गया। मित्रराष्ट्रों ने समझा था कि उनको किलेबंदी की यह व्यवस्था शत्रुओं के आक्रमण को रोकने और झेलने में समर्थ होगी किंतु वे अपनी इस योजना में पूर्णत: असफल रहे।
 
[[जर्मनी]] की सेनाएँ अपनी संशोधित [[श्लीफ़ेन योजना]] के अनुसार [[बेल्जियम]] से होकर मई, 1940 में कूच करने लगी। बेल्जियम से होकर कूच करते समय जर्मन सेनाएँ फ्राँस की पूर्वी सीमा पर स्थित सुदृढ़ किलों से कतराती हुई चली। बेल्जियम में लीज और नामूर के दुर्ग और उत्तरी फ्राँस के दुर्ग, जो जर्मन सेनाओं की दाहिनी टुकड़ी के कूच मार्ग में पड़ते थे, उन दुर्गों की अपेक्षा जो दूर दक्षिण तथा फ्रँास[[फ्रांस]] की पूर्वी सीमा पर स्थित थे, कमजोर थे। जर्मन सेनाओं ने इसका सही अनुमान लगा लिया था और इसीलिए उन्होंने एक नई विधि निकाली जिसे श्लीफ़ेन प्लान कहते हैं। उन्होंने लीज़ के निकट अलबर्ट नहर तथा म्यूजे के चौराहों पर आक्रमण किया। 24 घंटे में इबेन-इमाइल का दुर्ग विजित हो गया। समस्त संसार इस दुर्ग के विजित हो जाने पर आश्चर्यचकित हो गया क्योंकि इसकी किलाबंदी आधुनिक ढंग से हुई थी। जर्मनों की इस जीत पर पश्चिमी राष्ट्रों ने सोचा कि जर्मनों के पास कोई गुप्त अस्त्र है परंतु वास्तव में उनकी जीत की रहस्य आक्रमण में पूर्ण सामंजस्य था। प्रात:काल जर्मनों ने किले की चोटी पर अपने सैनिक उतार दिए। प्रतिशिक्षित इंजीनियरों ने तुरंत ही बारूद लगानी शुरु कर दी जिससे किले की छतरियाँ ध्वस्त की जा सकें। तोपों की नालियों में उन्होंने हथगोले भी गिरा दिए और किले के बारूदखाने में विस्फ ोटक[[विस्फोटक]] पदार्थ पहुँचा दिए। इसके पूर्व कि आक्रमण की सूचना देने के लिए घँटियाँ बजें, वायुयानों द्वारा अन्य दुर्गों पर आक्रमण शुरू हो गया। वायुयानों द्वारा उतारे गए सैनिकों की सहायता के लिये पैदल सेना नौकाआैं में नदी पार कर पहुँच गई और दोनों ने मिलकर क्षण भर में लीज़ का पूरा किला घेरकर देखते ही देखते जीत लिया। गुप्त अस्त्र के साथ घर के भेदियों (फ़िफ्थ कालम) को भी इस पराजय का कारण बताया गया परंतु वास्तव में वायुसेना तथा स्थलसेना का दक्ष सहयोग ही जर्मनों की विजय का कारण था। इसी ढंग से जर्मनों ने माजिनो रेखा के उत्तरी सिरे पर सेदाँ पर भी आक्रमण किया और स्तालिन लाइन को तोड़ने में भी इसी युक्ति से काम लिया।
 
1944 में जर्मनी के [[फ़ोर्ट्रेस ऑव यूरोप]] की रक्षा में कंकड़ तथा लोहे द्वारा किलाबंदी पर अधिक जोर दिया गया। किलों को टीलोंहटीलों के एक ओर बनाया गया जिसको देखकर उस दुर्ग के अजेय होने का आभास हो। संचारण की व्यवस्था, वायुनाशक तोपों की रक्षा तथा इन किलों के पीछे पैदल सेना सहायतार्थ अवस्थित करने पर अधिक जोर दिया गया। के किले के सामने समुद्र के किनारे किनारे सुरंगें और जल तथा किनारों पर अवरोधक लगाए गए। यह स्थायी तथा मैदानी किलाबंदी का एक सम्मिलित रूप था।
 
[[द्वितीय महायुद्ध]] के समय कई स्थानों पर फ्रांसीसियों ने सुदृढ़ मैदानी मोर्चाबंदी की। उन्होंने बड़ी बड़ी खाइयाँ खोदी जो इतनी गहरीं थीं कि उनसे टैंक तक रोके जा सकते थे। टैंक नाशक तोपें भी इन खाइयों के सामने के भागपर अग्निवर्षा करने के लिए लगाई गई थीं। सर्वप्रथम जर्मनों ने तोपखाने तथा निचली उड़ानवाले वायुयानों द्वारा फ्रांसीसी स्थानों पर बमबारी की। इसके पश्चात्‌ टैंको ने इन लहरदार ऐंटी-टैंक खाइयों के विरुद्ध धुएँ की आड़ में बढ़ना शुरु किया। यह जान लेने के पश्चात्‌ कि [[टैंक नाशक तोप]] किस स्थान पर लगाई गई, जर्मनों ने एक टैंकों को आगे बढ़ाया जिसने टैंक नाशक तोन को टकराकर गिरा दिया और फ्रंासीसी तोपची की दृष्टि के सामने अड़कर उसके दृष्टिमार्ग को अवरुद्ध कर दिया। इस प्रकार जर्मनों ने अपने टैंको की, जो पीछे आ रहे थे, रक्षा की और वे इसी रक्षा में खाइयों तक पहुँच गए, विशेष यंत्रों द्वारा, खाइयों पर पुल बनाया और पार हो गए। फ्रंासीसियों की इस प्रकार जितनी रक्षार्थ पंक्तियाँ तथा खाइयाँ थीं वे सब जर्मन टैंक इसी विधि से पार करते गए। पार करने में फ्रंासीसियों की रक्षा दीवारों को भी अपनी भारी-भारी तोपों से चकनाचूर करते चले गए।