"समयसार": अवतरणों में अंतर
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यह ग्रंथ दो-दो पंक्तियों से बनी 415 [[गाथा]]ओं का संग्रह है। ये गाथाएँ [[पालि|पालि भाषा]] में लिखी गई है। इस समयसार के कुल नौ अध्याय है जो क्रमश: इस प्रकार हैं-
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* पुण्य–पाप अधिकार
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* संवर
* निर्जरा अधिकार
* बंध अधिकार
* मोक्ष अधिकार
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इन नौ अध्यायों में प्रवेश करने से पहले एक आमुख है जिसे वे '''पूर्वरंग''' कहते हैं। यह मानों समयसार का प्रवेशद्वार है। इसी में वे चर्चा करते है कि '''समय क्या है''', यह चर्चा बड़ी अर्थपूर्ण, अर्थगर्भित है।
वर्तमान में समयसार ग्रन्थ पर दो टीकायें उपलब्ध हैं। एक श्री अमृतचंद्रसूरि की, दूसरी श्री जयसेनाचार्य की। पहली टीका का नाम 'आत्मख्याति' है और दूसरी का नाम ‘‘तात्पर्यवृत्ति’’ है।
[[श्रेणी:जैन ग्रन्थ]]
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