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'''वराहमिहिर''' (वरःमिहिर) ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के [[भारत|भारतीय]] गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ थे। वाराहमिहिर ने ही अपने पंचसिद्धान्तिका में सबसे पहले बताया कि [[अयनांश]] का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर है।

कापित्थक ([[उज्जैन]]) में उनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का [[गुरुकुल]] सात सौ वर्षों तक अद्वितीय रहा। वरःमिहिर बचपन से ही अत्यन्त मेधावी और तेजस्वी थे। अपने पिता आदित्यदास से परम्परागत गणित एवं ज्योतिष सीखकर इन क्षेत्रों में व्यापक शोध कार्य किया। [[समय]] मापक घट यन्त्र, इन्द्रप्रस्थ में [[लौहस्तम्भ]] के निर्माण और [[ईरान]] के शहंशाह [[नौशेरवाँ]] के आमन्त्रण पर जुन्दीशापुर नामक स्थान पर [[वेधशाला]] की स्थापना - उनके कार्यों की एक झलक देते हैं। वरःमिहिर का मुख्य उद्देश्य गणित एवं विज्ञान को जनहित से जोड़ना था। वस्तुतः [[ऋग्वेद]] काल से ही भारत की यह परम्परा रही है। वरःमिहिर ने पूर्णतः इसका परिपालन किया है।
 
== जीवनी ==
वराहमिहिर का जन्म सन् ४९९ में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। यह परिवार [[उज्जैन]] के निकट कपित्थ(कायथा) नामक गांव का निवासी था। उनके पिता आदित्यदास सूर्य भगवान के भक्त थे। उन्हीं ने मिहिर को ज्योतिष विद्या सिखाई। कुसुमपुर ([[पटना]]) जाने पर युवा मिहिर महान खगोलज्ञ और गणितज्ञ [[आर्यभट्ट]] से मिले। इससे उसे इतनी प्रेरणा मिली कि उसने ज्योतिष विद्या और खगोल ज्ञान को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया। उस समय उज्जैन विद्या का केंद्र था। [[गुप्त काल|गुप्त शासन]] के अन्तर्गत वहां पर कला, विज्ञान और संस्कृति के अनेक केंद्र पनप रहे थे। मिहिर इस शहर में रहने के लिये आ गये क्योंकि अन्य स्थानों के विद्वान भी यहां एकत्र होते रहते थे। समय आने पर उनके ज्योतिष ज्ञान का पता विक्रमादित्य [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] को लगा। राजा ने उन्हें अपने दरबार के नवरत्नों में शामिल कर लिया। मिहिर ने सुदूर देशों की यात्रा की, यहां तक कि वह [[यूनान]] तक भी गये। सन् ५८७ में वराहमिहिर की मृत्यु हो गई।
उसने ज्योतिष विद्या और खगोल ज्ञान को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया।
उस समय उज्जैन विद्या का केंद्र था। [[गुप्त काल|गुप्त शासन]] के अन्तर्गत वहां पर कला, विज्ञान
और संस्कृति के अनेक केंद्र पनप रहे थे। मिहिर इस शहर में रहने के लिये आ गये
क्योंकि अन्य स्थानों के विद्वान भी यहां एकत्र होते रहते थे। समय आने पर उनके
ज्योतिष ज्ञान का पता विक्रमादित्य [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] को लगा। राजा ने उन्हें
अपने दरबार के नवरत्नों में शामिल कर लिया। मिहिर ने सुदूर देशों की यात्रा की,
यहां तक कि वह [[यूनान]] तक भी गये। सन् ५८७ में वराहमिहिर की मृत्यु हो गई।
 
== कृतियाँ ==
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अपने विशद ज्ञान और सरस प्रस्तुति के कारण उन्होंने खगोल जैसे शुष्क विषयों को
भी रोचक बना दिया है जिससे उन्हें बहुत ख्याति मिली। उनकी पुस्तक पंचसिद्धान्तिका (पांच सिद्धांत), बृहत्संहिता, बृहज्जात्क (ज्योतिष) ने उन्हें फलित ज्योतिष में वही स्थान दिलाया है जो राजनीति दर्शन में [[कौटिल्य]] का, [[व्याकरण]] में [[पाणिनि]] का और विधान में [[मनु]] का है।
 
===त्रिकोणमिति===
निम्ननिखित त्रिकोणमितीय सूत्र वाराहमिहिर ने प्रतिपादित किये हैं-।
 
:<math> \sin^2 x + \cos^2 x = 1 \;\!</math>
 
:<math> \sin x = \cos\left(\frac{\pi} {2} - x \right) </math>
 
:<math> \frac {1 - \cos 2x}{2} = \sin^2x </math>
 
वाराहमिहिर ने [[आर्यभट्ट प्रथम]] द्वारा प्रतिपादित [[आर्यभट की ज्या सारणी|ज्या सारणी]] को और अधिक परिशुद्धत बनाया।
 
===अंकगणित===
वराहमिहिर ने '''शून्य''' एवं ऋणात्मक संख्याओं के बीजगणितीय गुणों को परिभाषित किया। <ref>{{cite web |url=http://www.archaeologyonline.net/artifacts/history-mathematics.html |title=History of Mathematics in India}}</ref>
 
===क्रमचय-संचय===
वराहमिहिर ने वर्तमान समय में [[पास्कल त्रिकोण]] (Pascal's triangle) के नाम से प्रसिद्ध संख्याओं की खोज की। इनका उपयोग वे द्विपद गुणाकों (binomial coefficients) की गणना के लिये करते थे। <ref>{{cite web |url=http://www.es.flinders.edu.au/~mattom/science+society/lectures/illustrations/lecture14/varahamihira.html |title=Varahamihira}}</ref><ref>{{cite web |url=http://www.archaeologyonline.net/artifacts/history-mathematics.html |title=History of Mathematics in India}}</ref><ref>{{cite web |url=http://www-history.mcs.st-andrews.ac.uk/Biographies/Varahamihira.html |title=Varahamihira |author= J J O'Connor |author2= E F Robertson |last-author-amp= yes }}</ref>
 
===प्रकाशिकी===
वराहमिहिर का [[प्रकाशिकी]] में भी योगदान है। उन्होने कहा है कि [[परावर्तन]] कणों के प्रति-प्रकीर्णन (back-scattering) से होता है। उन्होने [[अपवर्तन]] की भी व्याख्या की है।<ref>{{cite web |url=http://www.es.flinders.edu.au/~mattom/science+society/lectures/illustrations/lecture14/varahamihira.html |title=Varahamihira}}</ref>
 
1. ^ "the Pañca-siddhāntikā ("Five Treatises"), a compendium of Greek, Egyptian, Roman and Indian astronomy. Varāhamihira's knowledge of Western astronomy was thorough. In 5 sections, his monumental work progresses through native Indian astronomy and culminates in 2 treatises on Western astronomy, showing calculations based on Greek and Alexandrian reckoning and even giving complete Ptolemaic mathematical charts and tables. Encyclopædia Britannica (2007) s.v.Varahamihira ^
 
2. E. C. Sachau, Alberuni's India (1910), vol. I, p.&nbsp;153
 
== बाहरी कड़ियाँ ==