"गोवा": अवतरणों में अंतर
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{{ज्ञानसन्दूक भारत का प्रान्त
| प्रान्त का नाम = गोवा
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== नाम का उद्भव ==
[[महाभारत]] में गोवा का उल्लेख '''गोपराष्ट्र''' यानि गाय चरानेवालों के देश के रूप में मिलता है। दक्षिण [[कोंकण]] क्षेत्र का उल्लेख ''गोवाराष्ट्र'' के रूप में पाया जाता है। [[संस्कृत]] के कुछ अन्य पुराने स्त्रोतों में गोवा को ''गोपकपुरी'' और ''गोपकपट्टन'' कहा गया है जिनका उल्लेख अन्य ग्रंथों के अलावा [[हरिवंशम]] और [[स्कंद पुराण]] में मिलता<ref>{{cite book|last=Indian Archaeological Society|title=Purātattva, Issue 36|year=2006|publisher=Indian Archaeological Society}}</ref> है। गोवा को बाद में कहीं कहीं ''गोअंचल'' भी कहा गया है। अन्य नामों में '''गोवे''', '''गोवापुरी''', ''गोपकापाटन'' और''गोमंत'' प्रमुख हैं। [[टोलेमी]] ने गोवा का उल्लेख वर्ष 200 के आस-पास ''गोउबा'' के रूप में किया है। [[अरब]] के मध्युगीन यात्रियों ने इस क्षेत्र को चंद्रपुर और चंदौर के नाम से इंगित किया है जो मुख्य रूप से एक तटीय शहर था। जिस स्थान का नाम [[पुर्तगाल]] के यात्रियों ने गोवा रखा वह आज का छोटा सा समुद्र तटीय शहर गोअ-वेल्हा है। बाद मे उस पूरे क्षेत्र को गोवा कहा जाने लगा जिस पर पुर्तगालियों ने कब्जा किया।
जनश्रुति के अनुसार गोवा जिसमें [[कोंकण]] क्षेत्र भी शामिल है (और जिसका विस्तार [[गुजरात]] से [[केरल]] तक बताया जाता है) की रचना भगवान [[परशुराम]] ने की थी। कहा जाता है कि परशुराम ने एक [[यज्ञ]] के दौरान अपने बाणो की वर्षा से समुद्र को कई स्थानों पर पीछे धकेल दिया था और लोगों का कहना है कि इसी वजह से आज भी गोवा में बहुत से स्थानों का नाम वाणावली, वाणस्थली इत्यादि हैं। उत्तरी गोवा में ''हरमल'' के पास आज भूरे रंग के एक पर्वत को [[परशुराम]] के यज्ञ करने का स्थान माना जाता है।
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