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'''आर्य''' [[भारत|भारतीयोभारतीयों]] (विशेषकर उत्तर भारतीयों) के वैदिक कालीन पूर्वजों को कहा जाता है।
 
== आर्य धर्म और संस्कृति ==
आर्य शब्द का अर्थ है प्रगतिशील। आर्य धर्म प्राचीन आर्यों का धर्म और श्रेष्ठ धर्म दोनों समझे जाते हैं। प्राचीन आर्यों के धर्म में प्रथमत: प्राकृतिक देवमण्डल की कल्पना है जो [[भारत]], में पाई जाती रही है।.इसके बाद पहले के युग में भारत से कुछ आर्यन्स भारत से बाहर चले गये थे।.जैसे [[ईरान]], [[यूनान]], [[रोम]], [[जर्मनी]] आदि में आज भी आर्यन्स के वंसज पाए जाते हैं। इसमें द्यौस् (आकाश) और पृथ्वी के बीच में अनेक देवताओं की सृष्टि हुई है। भारतीय आर्यों का मूल धर्म [[ऋग्वेद]] में अभिव्यक्त है, ईरान में बसे आर्य [[अवेस्ता]] में, यूनानियों का उलिसीज़ और ईलियद में। देवमंडल के साथ आर्य कर्मकांड का विकास हुआ जिसमें मंत्र, यज्ञ, श्राद्ध (पितरों की पूजा), अतिथि सत्कार आदि मुख्यत: सम्मिलित थे। आर्य आध्यात्मिक दर्शन (ब्राहृ, आत्मा, विश्व, मोक्ष आदि) और आर्य नीति (सामान्य, विशेष आदि) का विकास भी समानांतर हुआ। शुद्ध नैतिक आधार पर अवलंबित परंपरा विरोधी अवैदिक संप्रदायों-बौद्ध, जैन आदि-ने भी अपने धर्म को आर्य धर्म अथवा सद्धर्म कहा।
आर्य शब्द का अर्थ है प्रगतिशील,
आर्य धर्म प्राचीन आर्यों का धर्म और श्रेष्ठ धर्म दोनों समझे जाते हैं। प्राचीन आर्यों के धर्म में प्रथमत: प्राकृतिक देवमण्डल की कल्पना है जो [[भारत]], में पाई जाती रही है।.इसके बाद पहले के युग में भारत से कुछ आर्यन्स भारत से बाहर चले गये थे।.जैसे [[ईरान]], [[यूनान]], [[रोम]], [[जर्मनी]] आदि में आज भी आर्यन्स के वंसज पाए जाते हैं। इसमें द्यौस् (आकाश) और पृथ्वी के बीच में अनेक देवताओं की सृष्टि हुई है। भारतीय आर्यों का मूल धर्म [[ऋग्वेद]] में अभिव्यक्त है, ईरान में बसे आर्य [[अवेस्ता]] में, यूनानियों का उलिसीज़ और ईलियद में। देवमंडल के साथ आर्य कर्मकांड का विकास हुआ जिसमें मंत्र, यज्ञ, श्राद्ध (पितरों की पूजा), अतिथि सत्कार आदि मुख्यत: सम्मिलित थे। आर्य आध्यात्मिक दर्शन (ब्राहृ, आत्मा, विश्व, मोक्ष आदि) और आर्य नीति (सामान्य, विशेष आदि) का विकास भी समानांतर हुआ। शुद्ध नैतिक आधार पर अवलंबित परंपरा विरोधी अवैदिक संप्रदायों-बौद्ध, जैन आदि-ने भी अपने धर्म को आर्य धर्म अथवा सद्धर्म कहा।
 
सामाजिक अर्थ में "आर्य' का प्रयोग पहले संपूर्ण मानव के अर्थ में होता था। कभी-कभी इसका प्रयोग सामान्य जनता विश के लिए ("अर्य' शब्द से) होता था। फिर अभिजात और श्रमिक वर्ग में अंतर दिखाने के लिए आर्य वर्ण और शूद्र वर्ण का प्रयोग होने लगा। फिर आर्यों ने अपनी सामाजिक व्यवस्था का आधार वर्ण को बनाया और समाज चार वर्णों में वृत्ति और श्रम के आधार पर विभक्त हुआ। ऋक्संहिता में चारों वर्णों की उत्पत्ति और कार्य का उल्लेख इस प्रकार है:-
 
<blockquote><font;font size = 3;font color = "green">
:'''ब्राहृणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्य: कृत:।''' <br /><br />
:'''ऊरू तदस्य यद्वैश्य: पदभ्यां शूद्रोऽजायत।।शूद्रोऽजायत॥'''10।।10॥ 90। 22।।</font></blockquote>22॥
 
(इस विराट् पुरुष के मुंह से ब्राह्मण, बाहु से राजस्व (क्षत्रिय), ऊरु (जंघा) से वैश्य और पद (चरण) से शूद्र उत्पन्न हुआ।)
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== श्रेष्ठ, शिष्ट अथवा संज्जन ==
नैतिक अर्थ में "आर्य" का प्रयोग महाकुल, कुलीन, सभ्य, सज्जन, साधु आदि के लिए पाया जाता है। ('''महाकुलकुलीनार्यसभ्यसज्जनसाधव:।''' -[[अमरकोष]] 7। 3)। [[सायणाचार्य]] ने अपने ऋग्भाष्य में "आर्य' का अर्थ विज्ञ, यज्ञ का अनुष्ठाता, विज्ञ स्तोता, विद्वान् आदरणीय अथवा सर्वत्र गंतव्य, उत्तमवर्ण, मनु, कर्मयुक्त और कर्मानुष्ठान से श्रेष्ठ आदि किया है। आदरणीय के अर्थ में तो संस्कृत साहित्य में आर्य का बहुत प्रयोग हुआ है। पत्नी पति को आर्यपुत्र कहती थी। पितामह को आर्य (हिन्दी - आजा) और पितामही को आर्या (हिंदी - आजी, ऐया, अइया) कहने की प्रथा रही है। नैतिक रूप से प्रकृत आचरण करनेवाले को आर्य कहा गया है :
<blockquote><font;font size = 3;font color = "green">
 
:'''कर्तव्यमाचनरन् कार्यमकर्तव्यमनाचरन्।''' <br />
:'''तिष्ठति प्रकृताचारे स आर्य इति उच्यते।।उच्यते॥'''</font> </blockquote>
 
प्रारंभ में "आर्य' का प्रयोग प्रजाति अथवा वर्ण के अर्थ में भले ही होता रहा हो, आगे चलकर भारतीय इतिहास में इसका नैतिक अर्थ ही अधिक प्रचलित हुआ जिसके अनुसार किसी भी वर्ण अथवा जाति का व्यक्ति अपनी श्रेष्ठता अथवा सज्जनता के कारण आर्य कहा जाने लगा।
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== महर्षि अरविन्द के विचार ==
आर्य लोग जगत के सनातन स्थापना के जानकर थे उनके अनुसार प्रेम शक्ति सत् के विकास के लिए सर्व्यापी नारायण या ईश्वर स्थावर-जंगम मनुष्य-पशु किट-पतंग साधू-पापी शत्रु-मित्र तथा
देवता और असुर में प्रकट होकर लीला कर रहे है| अरविन्द घोष के अनुसार अर्यालोग मित्र कि रक्षा करते और शत्रु का नाश करते किन्तु उसमे उनकी आसक्ति नहीं थी| वे सर्वत्र सब प्राणियों में सब वस्तुओं में कर्मो में फल में इश्वर को देखा कर ईष्ट अनिष्ट शत्रु मित्र सुख दुःख सिद्धि असिद्धि में समबाभाव रखते थे| इस समभाव का परिणाम यह नहीं था कि सब कुछ इनके लिए सुखदायि और सब कर्म उनके करने योग्य थे
वस्तुओं में कर्मो में फल में इश्वर को देखा कर ईष्ट अनिष्ट शत्रु मित्र सुख दुःख सिद्धि असिद्धि में समबाभाव रखते थे| इस समभाव का परिणाम यह नहीं था कि सब कुछ इनके लिए सुखदायि और सब कर्म उनके करने योग्य थे
 
बिना सम्पूर्ण योग के द्वंद्व मिटता नहीं हे और यह अवस्था बहुत कम लोगो को प्राप्त होती है, किन्तु आर्य शिक्षा साधारण आर्यों कि सम्पति हे | आर्य इष्ट साधन और अनिष्ट को हटाने में सचेत रहते थे, किन्तु इष्ट साधन
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== आर्य-आक्रमण के सिद्धांत में समय के साथ परिवर्तन ==
आर्य आक्रमण का सिद्धांत अपने आराम्भिक दिनों से ही लगातार परिवर्तित होते रहा है।
आर्य-आक्रमण के सिद्धांत कि अधुनिक्तम परिकल्पन के अनुसार यह कोइ जाति विशेष नही थी अपितु यह केवल एक सम्मानजनक शब्द था जो कि आन्ग्ल्भाषा के SIR के समनर्थाक था | आर्यो के आक्रमन की कल्पान के समर्थन के सभी तथ्य भ्रमक सिद्ध हो चुके है |
 
सन्दर्भ - आर्य कौन थे - लेखक - श्री राम साठे अनुवादक - किशोरी लाल व्यास प्रकाशक - इतिहास संकलन योजना
 
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* [http://www.dnaindia.com/india/report_new-research-debunks-aryan-invasion-theory_1623744 New research debunks Aryan invasion theory] (DNA)
* [http://www.thehindu.com/news/national/article2704716.ece More than 50% of South Asians have Indian ancestry: study ] (The Hindu)
* [http://www.newsgram.com/vedic-sanskrit-older-than-avesta-baudhayana-mentions-westward-migrations-from-india-dr-n-kazanas/ Vedic Sanskrit older than Avesta, Baudhayana mentions westward migrations from India: Dr N Kazanas]
 
[[श्रेणी:प्राचीन सभ्यताएँ]]
[[श्रेणी:सभ्यता]]
 
[[ml:ആര്യന്‍]]
"https://hi.wikipedia.org/wiki/आर्य" से प्राप्त