"पक्षिपटबंधन": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
शताब्दियों पूर्व [[मार्कोंमार्को पोलो]] ने अपने यात्रा (सन्‌ 1271-1295) संस्मरण में [[बाज]] पक्षियों के पैर में पड़े छल्लों का उल्लेख किया है, जिनपर उनके मालिकों का नाम एवं पता लिखा था, परंतु ये छल्ले किसी वैज्ञानिक ध्येय से नहीं वरन्‌ बाजबाजी में अपने पक्षियों को पहचानने के लिए पहनाए जाते थे। पक्षियों को चिह्नित (पटबंधित) करके उनके जीवन के रहस्य जानने का प्रथम प्रयास यूरोपीय देशों में 18वीं शताब्दी में किया गया। उन दिनों के तरीके थे, पूँछ या डैने के पंखों को स्याही अथवा 'पेंट' द्वारा रँगना, धातु के छल्लों को शरीर के किसी भाग पर किसी प्रकार चिपका देना, 'पार्चमेंट' पर लिखकर रेशमी धागे से शरीर पर बाँध देना, तथा पैरों या चोंच को पहचान के लिए विभिन्न ढंगों से विकृत कर देना आदि। स्पष्ट है, उपर्युक्त कोई भी साधन सफल नहीं हो, पाते थे, क्योंकि समय बीतने और परों के झड़ जाने पर उनके सभी च्ह्रि मिट जाते थे।
 
जंगली पक्षियों में पटबंधन का प्रथम उल्लेख 1710 ई. में पकड़े गए बृहत्‌ धवल बक (Ardea cinerea) के बारे में मिलता है, जिसकी टाँग में धातु का छल्ला पड़ा था। कुछ वर्षों बाद टर्की नामक पक्षी पर भी ऐसा ही छल्ला पाया गया, जो चाँदी का था। 1804 ई. में डच प्रकृतिवादी ब्रुगमान (Brugmann) ने कई सफेद बगुलों (Ciconia alba) को यह जानने के लिए पटबंधित किया कि वे अपने जन्मस्थान पर फिर से लौटकर आते हैं या नहीं, परंतु इन पक्षियों के फिर से प्राप्त न होने के कारण यह प्रयोग असफल रहा। तदुपरांत डेनमार्क में वीबॉर्ग (Viborg) नामक स्थान के निवासी हैंस क्रिश्चियन कॉर्नीलियस मॉर्टेन्सन (Hans Christian Cornelius Mortensen) का उल्लेख मिलता है। इनके मन में पटबंधन का विचार एक प्रकाशित समाचार द्वारा आया। उन्होंने पढ़ा कि एक हंस (goose), जिसक गर्दन में सन्‌ 1800 अंकित पीतल का एक छल्ला पड़ा था, 35 वर्षों बाद हस्तगत हुआ। इसके पश्चात्‌ ही इन्होंने पक्षिपटबंधन का कार्य प्रारंभ किया। मॉर्टेन्सन को इस क्षेत्र का प्रवर्तक कहा जाता है, क्योंकि इन्होंने अपने नियमित अध्ययनों से पक्षिपटबंधन को विज्ञान की एक उपयोगी शाखा बना दिया। उदाहरणार्थ, इन्होंने प्रथम बार प्रत्येक पक्षी को एक संख्या प्रदान की, जो वे छल्ले पर स्थायी रूप से खोद देते थे तथा अपनी डायरी में भी नोट कर लेते थे और जिसके फलस्वरूप पक्षी, चाहे कितनी ही समय बाद अथवा दूरी पर क्यों न हस्तगत हुआ हो, सदैव पहचाना जा सकता था। फिर वे थोड़े से पक्षियों में (जैसा साधारणतया प्रचलित था) नहीं बल्कि अधिक से अधिक पक्षियों में पटबंधन करते थे, जिससे उनके प्रयोग के फलों की अधिक निश्चय के साथ पुष्टि हो सके। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने तथा अन्य देशों के समाचारपत्रों तथा पत्रपत्रिकाओं में अपने उद्देश्यों को प्रकाशित करके अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने का प्रथम सही प्रयास किया, क्योंकि ऐसे प्रयोगों में बिना अंतरराष्ट्रीय सहयोग के पूर्णत: सफल होने की संभावना नहीं होती।