"अफ़्रीका की भाषाएं": अवतरणों में अंतर

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सामी-हामी-परिवार के हामी भाग के पाँच मुख्य लक्षण हैं :
 
*(१) पद बनाने के लिए संज्ञाओं में उपसर्ग और क्रियाओं में प्रत्यय लगाए जाते हैं,
 
*(२) क्रिया के काल का बोध उतना नहीं होता जितना क्रिया के पूर्ण जाए जाने या अपूर्ण रहने का,
 
*(३) लिंगभेद पुरुषत्व और स्त्रीत्व पर अबलंबित न होकर आधार पर है। बड़े और शक्तिशाली जीव और पदार्थ (तलवार, बड़ी मोटी घास, बड़ी चट्टान, हाथी चाहे नर हो या मादा, आदि के बोधक शब्द) स्त्रीलिंग में होते हैं,
 
*(४) हामी की केवल एक भाषा (नामी) मे द्विवचन मिलता है, अन्यों मे नहीं। बहुवचन बनाने के कई ढंग हैं। अनाज, बालू, घास आदि छोटी चीजाऐं को समूहस्वरूप बहुवचन में ही रखा जाता है और यदि एकत्व का विचार करना होता है तो प्रत्यय जुड़ता है जैसे लिस्‌ (बहुत से आँसू), लिस (एक आँसू), बिल्‌ (पतिंगे), बिल (एक पतिंग),
 
*(५) हामी भाषाओं का एक विचित्र लक्षण बहुवचन में लिंगभेद कर देना है। इस नियम को ध्रुवाभिमुख कहते हैं। जैसे सोमाली भाषा में लिबि हिद्दू (शेर पु.)। लिबिहह्यहोदि (बहुत से शेर, स्त्री.), होयोदि (माता, स्त्री.), होयो इंकि (माताएँ, पु.)। बहुत से शेर स्त्रीलिंग में और बहुत सी माताएँ पुल्लिंग में हैं।
 
हामी भाषाओं मे विभक्तिसूचक प्रत्यय नहीं पाए जाते। ये भाषाएँ परस्पर काफी भिन्न हैं पर सर्वनाम-त्‌ प्रत्ययांत स्त्रीलिंग आदि एकतासूचक लक्षण हैं। हामी की मुख्य प्राचीन भाषाएँ मिस्री और कोप्ती थीं। मिस्री भाषा के लेख छह हजार वर्ष पूर्व तक के मिलते हैं। इसके दो रूप थे--एक धर्मग्रंथों का और दूसरा जनसाधारण का। जनसाधारण की मिस्री की ही एक भाषा कोप्ती है जिसके ईसवी दूसरी सदी से आठवीं सदी तक के ग्रंथ मिलतक हैं। यह १६वीं सदी तक की बोलचाल की भाषा थी। वर्तमान भाषाओं में हब्श देश की खमीर, पूर्वी अफ्रीका के कुशी समूह की, सोमालीलैंड की सोमाली और लीबियाकी लीबी (या बबर) प्रसिद्ध हैं। वर्तमान काल की मिस्त्री भाषा गठन में बहुत सरल और सीधी हैं। उसकी धातुएँ (मूल शब्द) कुछ एकाक्षर है और कुछ अनेकाक्षर।