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क्रेन का सर्वप्रथम कार्य भार को ऊपर की ओर उठाना है। किसी काँटे में लटकाकर भार उठा लिया जाता है। इस कार्य के लिये एक तो लंबी धरणी की आवश्यकता होगी, जिससे क्रेन के काम करने का क्षेत्र बड़ा हो और दूसरे इस धरणी को चलाने के लिये मशीनें आवश्यक होगी। चित्र 3. में दिखलाई गई क्रेन में (2) इसकी धरणी है, जिसपर इस क्रेन की क्षैतिज दिशा का काम निर्भर है। इस धरणी के ऊपरी भाग पर एक घिरनी लगी है जिसपर से क्रेन की मशीनों से आई जंजीर भार उठानेवाले काँटे तक चली जाती है। यह जंजीर पर्याप्त लंबी होती है और क्रेन की मशीन पर लगे हुए एक बड़े बेलन पर लिपटी रहती है। किसी भार या यंत्र को उठाते समय मशीन को उलटा घुमाने से जंजीर खुलकर नीचे चली जाती है और भार को उठाते समय बेलन सीधा घूमता है और जंजीर को अपने ऊपर लपेटता रहता है। जब भार उठ जाता है तो क्रेन के खंभे (1) को घुमाकर भार को यथास्थान ले जाते हैं।
[[Image:Erdöl Bohrturm.jpg|thumb|]]
[[Image:Large rock being lifted by a hoist from Spring ^3 - NARA - 285786.jpg|thumb|तिपाई पर लगी घिरनी से भारी पत्थर उठाया जा रहा है।]]
'''स्थिर क्रेनों''' में सबसे सरल क्रेन चित्र सामने दिखलाया गया हैं। तीन टाँगों के डेरिक के बीच घिरनियाँ लगाकर रस्सों के द्वारा भार को ऊपर उठा लिया जाता है। इस प्रकार क्रेन से भार को क्षैतिज दिशा में नहीं ले जाया जा सकता। यह केवल मशीनों के अंगों को एक दूसरे के ऊपर रखने के ही काम आता है। चित्र 5. के क्रेन में एक खड़े खंभे पर एक क्षैतिज धरणी है, जो चारों ओर घूम सकती है। इस प्रकार के क्रेन से भार को उठाकर कहीं भी रखा जा सकता है। यदि इस क्रेन के आधार के नीचे पहिए लगा दिए जायँ तो इसको ठेलकर या चलाकर या स्थान से दूसरे स्थान पर भी ले जाया जा सकता है। धरणी के दाहिनी ओर काँटा है जो आगे पीछे और ऊपर नीचे किया जा सकता है। इस धरणी के बाईं ओर घिरनियाँ और क्रेन को चलानेवाली मशीनें हैं। धरणी के ये दोनों भाग एक दूसरे का संतुलन बनाए रखते हैं। धरणी को घुमानेवाले दंत खंभे के ऊपर या नीचे की ओर किसी भी स्थान पर लगाए जा सकते हैं।
[[Image:Steam Cranes - geograph.org.uk - 445452.jpg|thumb| वाष्प से चलने वाली क्रेन]]
[[भाप]] से चलनेवाले एक क्रेन चित्र सामने दिखाया गया है। इसमें (6) क्रेन का वाष्पित्र है, जो घूमनेवाले आधार पर है। (4) इंजन से चलने वाला वह ढोल है जिसपर क्रेन की जंजीर लिपटी रहती है। इसी के साथ साथ धरणी (5) को उठाने और गिराने के लिये जंजीर (2) को खींचा या छोड़ा जाता है। इस प्रकार भार उठाने के समय काँटे के साथ साथ क्रेन की धरणी को उठाने का भी प्रबंध किया जाता है। इससे भार यथेष्ठ ऊपर उठाया जा सकता है। भार को उठाने के पश्चात्‌ क्रेन के आधार को घुमाकर भार को आवश्यक स्थान पर छोड़ देते हैं। इन क्रेनों के संतुलन का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि इस प्रकार के क्रेनों के उलटने से दुर्घटनाएँ हो चुकी हैं। भाप से चलनेवाले क्रेनों में तो वाष्पित्र ही तोलन का काम देता है, परंतु दूसरे क्रेनों में पृष्ठ की ओर भारी भारी पत्थर बाँध देते हैं। जैसे ही भार उठाया जाता है पीछे के भार उसका संतुलन करते है और जैसे जैसे यह ऊपर उठता है वैसे वैसे क्रेन के केंद्र से इसकी दूरी कम होती चली जाती हैं। इस समय क्रेन के संतुलन के पीछे की ओर उतने की भार आवश्यकता नहीं रहती जितने की भार को उठाने के समय थी। इसलिये यदि जंजीर टूट जाय, या पीछे इतना भार रख दिया गया हो कि क्रेन अपना संतुलन न रख सकें, तो क्रेन उलट जाएगा।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/क्रेन" से प्राप्त