"युगधर्म": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 4:
निम्नलिखित दो श्लोकों के द्वारा यह बताया गया है कि किस प्रकार युगों के ह्रास का क्रम से धर्मों का ह्रास भी देखा जाता है।
: ''अन्ये कृतयुगे धर्मास्त्रेतायां द्वापरेऽपरे।
: ''अन्ये कलियुगे न¤णां युगह्रासानुरूपतः
अर्थात् युग के ह्रास के अनुरूप चारों युगों के धर्मों का ह्रास होने लगा। [[कृतयुग]] या [[सत्ययुग]] के धर्म अन्य है, [[त्रेतायुग]] में अन्य, [[द्वापर]] में कुछ अन्य तथा [[कलियुग]] में कुछ अन्य धर्म उपाय के रूप
पंक्ति 10:
: ''तपः परं कृतयुगे त्रेतायां ज्ञानमुच्यते।
: ''द्वापरे यज्ञमेवाहुर्दानमेकं कलौ युगे
अर्थात् सत्ययुग का परम श्रेष्ठ धर्म [[तप]] या तपस्या माना गया है जिससे मानव अपने सभी श्रेय एवं प्रेय प्राप्त कर सकता था। त्रेता में ज्ञान प्राप्त करना, द्वापर में यज्ञ करना परम धर्म मान्य है और कलियुग का धर्म केवल दान को ही माना गया है।
|