"चर्यापद": अवतरणों में अंतर

No edit summary
पंक्ति 8:
'चर्यापद' में संग्रहित पदों की रचना कुछ ऐसे रहस्यात्मक ढंग से की गई है और कुछ ऐसी भाषा का सहारा लिया गया है कि बिना उसके मर्म को समझे इन पदों का अर्थ समझना कठिन है। इस भाषा को 'संधा' या 'संध्या भाषा' कहा गया है। 'संध्या भाषा' का अर्थ कई प्रकार से किया गया है। [[हरप्रसाद शास्त्री]] ने संध्या भाषा का अर्थ 'प्रकाश-अंधकारमयी' भाषा किया है। उनका कहना है कि उसमें कुछ प्रकाश और कुछ अंधकार मिले जुले रहते हैं, कुछ समझ में आता है, कुछ समझा में नहीं आता। महामहोपाध्याय पंडित विधुशेखर शास्त्री का मत है कि वास्तव में यह शब्द 'संध्या भाषा' नहीं है बल्कि 'संधा भाषा' है और इसका अर्थ यह है कि इस भाषा में शब्दों का प्रयोग साभिप्राय तथा विशेष रूप से निर्दिष्ट अर्थ में किया गया है (इंडियन हिस्टॉरिकल क्वार्टर्ली, 1928, पृ. 289)। इन शब्दों का अभिष्ट अर्थ अनुधावनपूर्वक ही समझा जा सकता है। अतएव कहा जा सकता है कि संध्या या संधा शब्द का प्रयोग 'अभिसंधि' या केवल 'संधि' के अर्थ में किया गया है। 'अभिसंधि' का तात्पर्य यहाँ अभीष्ट अर्थ है अथवा दो अर्थों का मिलन है अर्थात्‌ उस शब्द का एक साधारण अर्थ है तथा दूसरा अभिष्ट अर्थ। इसलिये संध्या के धुँधलेपन से इस शब्द का संबंध बतलाना उचित नहीं।
 
चर्यापद की [[संस्कृत]] टीका में टीकाकार मुनिदत्त ने संध्या भाषा शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में किया है। 21 संख्यक भुसुकपाद की चर्या में कहा गया है, 'निसि अँधारी मुसा अचारा'। इसकी टीका करते हुए टीकाकार ने कहा है, 'भूषक: संध्यावचने चित्तपवन: बोद्धव्य:'। सरहपाद के 'दोहाकोश' के पंजिकाकार अद्वयवज्र (ईसवी सन्‌ की 12वीं शताब्दी) ने कहा है -
: ''तया श्वेतच्छागनियांतनया नरकादिदु:खमनुभवंति। संध्या भाषमजानानतत्वात्‌ च'।
: ''अर्थात्‌ यज्ञ करनेवाले ब्राह्मणगण वेदमंत्र की संध्या भाषा को जानने के कारण पशुबलि कर नरकादि दु:ख का अनुभव करते हैं।
 
चर्यापदों के अर्थ को समझने के लिय सहजिया बौद्धों के दृष्टिकोण को समझ लेना आवश्यक है। साधना और दार्शनिक तत्व दोनों ही दृष्टियों से इन पदों का अध्ययन अपेक्षित है। चर्याकार सिद्धों के लिये साधना ही मुख्य वस्तु थी, वैसे वे दार्शनिक तत्व को भी आँखों से ओझल नहीं होने देते। सहजिया बौद्धधर्म की उत्पत्ति महायान से हुई, अतएव यह स्वाभाविक ही है कि महायान बौद्धधर्म की कुछ विशेषताएँ इसमें पाई जाती हैं।