"अष्टाध्यायी": अवतरणों में अंतर

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== अष्टाध्यायी के बाद ==
अष्टाध्यायी के साथ आरंभ से ही अर्थों की व्याख्यापूरक कोई वृत्ति भी थी जिसके कारण अष्टाध्यायी का एक नाम, जैसा पतंजलि ने लिखा है, वृत्तिसूत्र भी था। और भी, माथुरीवृत्ति, पुण्यवृत्ति आदि वृत्तियाँ थीं जिनकी परंपरा में वर्तमान [[काशिकावृत्ति]] है। अष्टाध्यायी की रचना के लगभग दो शताब्दी के भीतर [[कात्यायन]] ने सूत्रों की बहुमुखी समीक्षा करते हुए लगभग चार सहस्र [[वार्तिक|वार्तिकों]] की रचना की जो सूत्रशैली में ही हैं। वार्तिकसूत्र और कुछ वृत्तिसूत्रों को लेकर [[पतंजलि]] ने [[महाभाष्य]] का निर्माण किया जो पाणिनीय सूत्रों पर अर्थ, उदाहरण और प्रक्रिया की दृष्टि से सर्वोपरि ग्रंथ है। "अथ शब्दानुशासनम्"- यह माहाभाष्य का प्रथम वाक्य है। पाणिनि, कात्यायन और पतञ्जलि ये तीन व्याकरणशास्त्र के प्रमुख आचार्य हैं जिन्हें 'मुनित्रय' कहा जाता है। पाणिनि के सूत्रों के आधार पर [[भट्टोजिदीक्षित]] ने [[सिद्धान्तकौमुदी]] की रचना की, और उनके शिष्य [[वरदराज]] ने सिद्धान्तकौमुदी के आधार पर [[लघुसिद्धानत्कौमुदी]] की रचना की।
 
अष्टाध्यायी में वैदिक संस्कृत और पाणिनि की समकालीन शिष्ट भाषा में प्रयुक्त संस्कृत का सर्वांगपूर्ण विचार किया गया है। वैदिक भाषा का व्याकरण अपेक्षाकृत और भी परिपूर्ण हो सकता था। पाणिनि ने अपनी समकालीन संस्कृत भाषा का बहुत अच्छा सर्वेक्षण किया था। इनके शब्दसंग्रह में तीन प्रकार की विशेष सूचियाँ आई हैं :
:(1) जनपद और ग्रामों के नाम,
:(2) गोत्रों के नाम,
:(3) वैदिक शाखाओं और चरणों के नाम।
इतिहास की दृष्टि से और भी अनेक प्रकार की सांस्कृतिक सामग्री, शब्दों और संस्थाओं का सन्निवेश सूत्रों में हो गया है।
 
== पाणिनीय व्याकरण की महत्ता पर विद्वानों के विचार ==