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सम्पादन
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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: ''रूपांशकराशीनां रूपाद्यास्त्रिगुणिता हरः क्रमशः ।
: ''द्विद्धिभ्रंशाभ्यस्तावादिमचरमौ फले रूपे ॥'' (गतिणसारसंग्रह कलासवर्ण ७५)
: '''अर्थ''' : जब फल (result) १ हो तो १ अंश वाले भिन्न, जिनके हर १ से शुरू होकर क्रमशः ३ से गुणित होते जायेंगे। प्रथम और अन्तिम को (क्रमशः) २ तथा २/३ से गुणा किया जायेगा।
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