"सत्य नारायण व्रत कथा": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोतहीन|date=दिसम्बर 2012}}{{ज्ञानसन्दूक त्योहार
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त्योहार_के_नाम = सत्य नारायण व्रत कथा
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[[सत्य]] को नारायण ([[विष्णु]] के रूप में पूजना ही सत्यनारायण की पूजा है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि संसार में एकमात्र नारायण ही सत्य हैं, बाकी सब माया है।
 
भगवान की पूजा कई रूपों में की जाती है, उनमें से उनका सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में बताया गया है। इसके मूल पाठ में पाठांतर से लगभग 170 श्लोक [[संस्कृत भाषा]] मे उपलब्ध है जो पांच अध्यायों में बंटे हुए हैं। इस कथा के दो प्रमुख विषय हैं- जिनमें एक है [[संकल्प]] को भूलना और दूसरा है [[प्रसाद]] का अपमान।
 
व्रत कथा के अलग-अलग अध्यायों में छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है कि सत्य का पालन न करने पर किस तरह की परेशानियां आती है। इसलिए जीवन में सत्य व्रत का पालन पूरी निष्ठा और सुदृढ़ता के साथ करना चाहिए। ऐसा न करने पर [[भगवान]] न केवल नाराज होते हैं अपितु दंड स्वरूप संपति और बंधु बांधवों के सुख से वंचित भी कर देते हैं। इस अर्थ में यह कथा लोक में सच्चाई की प्रतिष्ठा का लोकप्रिय और सर्वमान्य धार्मिक साहित्य हैं। प्रायः [[पूर्णमासी]] को इस कथा का परिवार में वाचन किया जाता है। अन्य पर्वों पर भी इस कथा को विधि विधान से करने का निर्देश दिया गया है।<ref>[http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-KAK-satyanarayana-puja-4965170-NOR.html क्यों करते हैं घर में सत्यनारायण भगवान की कथा?]</ref>