"लल्ल": अवतरणों में अंतर

No edit summary
पंक्ति 1:
'''लल्लाचार्य''' (७२०-७९० ई) [[भारत]] के [[ज्योतिषविद्]] और [[गणितज्ञ]] थे। वे शाम्ब के पौत्र तथा भट्टत्रिविक्रम के पुत्र थे। उन्होने 'शिष्यधीवृद्धिदतन्त्रम्' (= शिष्य की बुद्धि बढ़ाने वाला तन्त्र) नामक एक ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ की रचना का कारण बताते हुए लल्ल ने स्वयं को [[आर्यभट]] का शिष्य बताया है।
 
इसी ग्रन्थ में उन्होने '[[अमरगति]]' (परपिचुअल मोशन) की सबसे पहली लिखित व्याख्या की है। इसमें २२ अध्याय हैं। प्रथम १३ अध्याय 'गणिताध्याय' के अन्तर्गत आते हैं तथा शेष ९ अध्याय मिलाकर 'गोलाध्याय' कहलाते हैं। लल्लाचार्य की यह एकमात्र खगोलशास्त्रीय कृति है जो जीवित बची है।
 
गोलाध्याय के सातवें अध्याय ('मिथ्याज्ञान' नामक बीसवाँ अध्याय) में लल्ल ने [[पुराण|पुराणों]] में कही गईं अनेकों ज्योतिषीय विचारों की आलोचना की है (जैसे धरती के चपटी होने का विचार, [[सूर्य]] का [[चन्द्रमा]] के अधिक निकट होना, [[राहु]] के कारण [[ग्रहण]] का होना आदि)। आचार्य लल्ल का तर्क था कि "यदि पृथ्वी सपाट है तो ताड़ के समान ऊँचे पेड़ दूर से नज़र क्यों नहीं आते?"
 
: ''समता यदि विद्यते भुवस्तरवस्तालनिभा बहुच्छायाः।
: ''कथमेव न दृष्टिगोचरं नु रहो यान्ति सुदूरसंस्थिताः॥ (लल्ल सिद्धांत)
 
== कृतियाँ ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/लल्ल" से प्राप्त