"भांडारकर प्राच्य शोध संस्थान": अवतरणों में अंतर

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शोधसंस्थान के मुख्य विभाग ये हैं -
 
*1. हस्तलिखित ग्रंथ विभाग; ,
*2. प्रकाशन विभाग; ,
*3. शोध विभाग; ,
*4. महाभारत विभाग।
 
हस्तलिखित ग्रंथ विभाग उन बहुसंख्यक पांडुलिपियों की देखभाल करता है, जो इस तरह के ग्रंथों का देश का सबसे बड़ा संग्रह है। अध्ययन और शोध में लगे छात्रों को ये पांडुलिपियाँ मँगनी भी दी जा सकती हैं। इन ग्रंथों का बृहत् सूचीपत्र 45 खंडों में प्रकाशित हो रहा है जिनमें से 20 से अधिक छप चुके हैं। यह विभाग संदर्भ ग्रंथों संबंधी सूचना प्रसारित करने के केंद्र का भी काम करता है। और भारत के तथा बाहर के अन्य स्थलों के संग्रहों से हस्तलिखित ग्रंथ प्राप्त करने का भी प्रयत्न करता है। प्रकाशन विभाग कई ग्रंथमालाओं का, जैसे बंबई संस्कृत और प्राकृत ग्रंथमाला, राजकीय प्राच्य ग्रंथमाला, भांडारकर प्राच्य ग्रंथमाला आदि का, प्रकाशन करता है। संस्कृत एवं प्राकृत के कितने ही प्राचीन ग्रंथों के समीक्षात्मक एवं सटिप्पण मूल पाठ प्रकाशित करने का श्रेय उसे प्राप्त है। कतिपय मौलिक व्याख्यात्मक एवं ऐतिहासिक पुस्तकें भी उसने प्रकाशित की हैं। कुछ उल्लेखनीय पुस्तकें ये हैं - प्रोफेसर [[पी. वी. काणे]] द्वारा प्रणीत धर्मशास्त्र का इतिहास, प्रोफेसर [[एच. डी. वेलंकर]] द्वारा संपादित "जिनरत्नकोश" तथा श्री [[आर. एन. दांडेकर]] द्वारा संपादित "भारत विषयक सामग्री के अध्ययन की प्रगति।" इसके सिवा प्रकाशन विभाग "ऐनल्स" (ऐतिहासिक अभिलेख) का भी प्रकाशन करता है।
2. प्रकाशन विभाग;
 
स्नातकोत्तर तथा गवेषण विभाग [[पूना विश्वविद्यालय]] की मान्यताप्राप्त अंगीभूत संस्था है जो विश्वविद्यालय की डाक्टरेट उपाधि के लिए शिक्षार्थियों को तैयार करती है। बहुत से विदेशी विद्यार्थी भी इस विभाग में अध्ययन करते हैं। संस्थान का इन सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य [[महाभारत]] का सटिप्पण एवं समीक्षात्मक संस्करण प्रकाशित करना है। कई खंडोंवाले, 13,000 पृष्ठों के इस ग्रंथ का सारे संसार के सुयोग्य विद्वानों ने स्वागत किया है और इसे भारतीय विद्वत्ता की महती उपलब्धि माना है। संस्थान "[[हरिवंश]]" का भी ऐसा ही समीक्षात्मक संस्करण प्रकाशित करने जा रहा है।
3. शोध विभाग;
 
4. महाभारत विभाग।
 
हस्तलिखित ग्रंथ विभाग उन बहुसंख्यक पांडुलिपियों की देखभाल करता है, जो इस तरह के ग्रंथों का देश का सबसे बड़ा संग्रह है। अध्ययन और शोध में लगे छात्रों को ये पांडुलिपियाँ मँगनी भी दी जा सकती हैं। इन ग्रंथों का बृहत् सूचीपत्र 45 खंडों में प्रकाशित हो रहा है जिनमें से 20 से अधिक छप चुके हैं। यह विभाग संदर्भ ग्रंथों संबंधी सूचना प्रसारित करने के केंद्र का भी काम करता है। और भारत के तथा बाहर के अन्य स्थलों के संग्रहों से हस्तलिखित ग्रंथ प्राप्त करने का भी प्रयत्न करता है। प्रकाशन विभाग कई ग्रंथमालाओं का, जैसे बंबई संस्कृत और प्राकृत ग्रंथमाला, राजकीय प्राच्य ग्रंथमाला, भांडारकर प्राच्य ग्रंथमाला आदि का, प्रकाशन करता है। संस्कृत एवं प्राकृत के कितने ही प्राचीन ग्रंथों के समीक्षात्मक एवं सटिप्पण मूल पाठ प्रकाशित करने का श्रेय उसे प्राप्त है। कतिपय मौलिक व्याख्यात्मक एवं ऐतिहासिक पुस्तकें भी उसने प्रकाशित की हैं। कुछ उल्लेखनीय पुस्तकें ये हैं - प्रोफेसर पी. वी. काणे द्वारा प्रणीत धर्मशास्त्र का इतिहास, प्रोफेसर एच. डी. वेलंकर द्वारा संपादित "जिनरत्नकोश" तथा श्री आर. एन. दांडेकर द्वारा संपादित "भारत विषयक सामग्री के अध्ययन की प्रगति।" इसके सिवा प्रकाशन विभाग "ऐनल्स" (ऐतिहासिक अभिलेख) का भी प्रकाशन करता है।
 
स्नातकोत्तर तथा गवेषण विभाग पूना विश्वविद्यालय की मान्यताप्राप्त अंगीभूत संस्था है जो विश्वविद्यालय की डाक्टरेट उपाधि के लिए शिक्षार्थियों को तैयार करती है। बहुत से विदेशी विद्यार्थी भी इस विभाग में अध्ययन करते हैं। संस्थान का इन सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य महाभारत का सटिप्पण एवं समीक्षात्मक संस्करण प्रकाशित करना है। कई खंडोंवाले, 13,000 पृष्ठों के इस ग्रंथ का सारे संसार के सुयोग्य विद्वानों ने स्वागत किया है और इसे भारतीय विद्वत्ता की महती उपलब्धि माना है। संस्थान "हरिवंश" का भी ऐसा ही समीक्षात्मक संस्करण प्रकाशित करने जा रहा है।
 
== इन्हें भी देखें ==