[[File:जैन कालचक्र.jpeg|thumb|जैन कालचक्र- ३ आरा, सुखमा-दुखमा में १४ कुलकर हुए थे।]]
[[जैन धर्म]] में '''कुलकर''' उन बुद्धिमान पुरुषों को संदर्भितकहते करता है,हैं जिन्होंने लोगों को जीवन निर्वाह के श्रमसाध्य गतिविधियों का प्रदर्शनको करना सिखाया।{{Sfn|Jain|2008|p=36-37}} जैन ग्रन्थों में इन्हें '''मनु''' भी कहा गया है। जैन काल चक्र के अनुसार जब अवसर्पणी के तीसरे आरा का अंत होने वाला था तब दस प्रकार के कल्पवृक्ष (ऐसे वृक्ष जो इच्छाएँ पूर्ण करते है) कम होने शुरू हो गए थे,{{Sfn|Jain|2015|p=7-8}} तब १४ महापुरुषों का क्रम क्रम से अंतराल के बाद जन्म हुआ। इनमें अंतिम कुलकर [[नाभिराज]] थे, जो प्रथम [[तीर्थंकर]] ऋषभदेव के पिता थे।