"स्टालिनवाद": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: दिनांक लिप्यंतरण और अल्पविराम का अनावश्यक प्रयोग हटाया।
No edit summary
पंक्ति 1:
[[चित्र:Lenin and stalin crop.jpg|right|thumb|300px|लेनिन और स्तालिन (१९२० के दशक के आरम्भिक दिनों में)]]
'''स्तालिनवाद''' (Stalinism) किसी विचारधारा या किसी दार्शनिक अवधारणा का नाम नहीं है। मोटे तौर पर साम्यवादी समाज के निर्माण के लिए [[जोसेफ स्तालिन]] द्वारा [[सोवियत संघ]] में अपनायी गयी नीतियों का समुच्चय ही '''स्तालिनवाद''' कहलाता है। [[रूस]] में हुई [[बोल्शेविक क्रांति]] और उसके नेता [[लेनिन]] की मृत्यु के बाद तीन दशकों में धीरे-धीरे एक राजनीतिक परिघटना के रूप में इसका विकास हुआ।
 
[[रूस]] में हुई [[बोल्शेविक क्रांति]] और उसके नेता [[लेनिन]] की मृत्यु के बाद तीन दशकों में धीरे-धीरे एक राजनीतिक परिघटना के रूप में इसका विकास हुआ। चूँकि 1927 से लेकर 1956 के बीच सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख रहे जोसेफ़ स्तालिन के जीवन में ही कुछ बुद्धिजीवियों ने मार्क्सवाद-लेनिनवाद-स्तालिनवाद नामक नयी विचारधारा का सूत्रीकरण करने का कमज़ोरकमजोर सा प्रयास किया था। इसकी मिसाल दिसम्बर, 1934 के [[प्रावदा]] में प्रकाशित कार्ल रैडेक के एक लेख के रूप में मिलती है। पर इस रवैये को न तो स्तालिन ने प्रोत्साहित किया और न ही [[सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी]] के अन्य सिद्धांतकारों ने। फिर भी इस परिघटना के केंद्र में मौजूद स्तालिन की बौद्धिक और राजनीतिक शख्सियत के कारण इसे स्तालिनवाद का नाम मिल गया। इसे दो तरीके से समझा जा सकता है : सोवियत संघ में स्तालिन के नेतृत्व में तीस साल तक चली समाजवाद के निर्माण की परियोजना के तौर पर और इस दौर से निकली वैचारिक और सांगठनिक प्रवृत्तियों के रूप में जिन्होंने सारी दुनिया में मार्क्सवादी राजनीति (कला और संस्कृति के क्षेत्रों समेत) को किसी न किसी रूप में प्रभावित किया।
 
मार्क्सवादी आंदोलन के भीतर सोवियत इतिहास में स्तालिन की भूमिका और मार्क्सवाद-लेनिनवाद पर स्तालिन के प्रभाव का मूल्यांकन करने के बारे में ज़बरदस्त विवाद है। इस लिहाज़ से सारी दुनिया के मार्क्सवादी तीन हिस्सों में बँटे हुए हैं : एक हिस्सा वह है जो स्तालिनवाद को पूरी तरह से स्वीकारते हुए उसे मार्क्सवाद का प्रमुख व्यावहारिक रूप करार देता है (भारत में इसका उदाहरण ख़ुद को मार्क्सवादी- लेनिनवादी कहने वाले नक्सलवादी गुटों के रूप में मौजूद है), दूसरा हिस्सा उसे पूरी तरह से ख़ारिज करते हुए मार्क्सवादी प्रयोग की त्याज्य विकृति करार देता है (जैसे, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी) और तीसरा हिस्सा वह है जो स्तालिनवाद के प्रभाव को आम तौर पर प्रेरक और सकारात्मक मानने के बावजूद उसके कुछ पहलुओं की आलोचना करता है (जैसे, माओ त्से तुंग जो स्तालिन को सत्तर फ़ीसदी सही और तीस फ़ीसदी ग़लत मानते थे)। वामपंथियों के ग़ैर-मार्क्सवादी हिस्सों और अन्य वैचारिक हलकों में स्तालिनवाद को एक ऐसी अधिनायकवादी प्रवृत्ति के रूप में देखा जाता है जिसने एक अत्यंत हिंसक और दमनकारी राज्य की स्थापना की।
पंक्ति 22:
स्तालिनवाद को सोवियत संघ से बाहर विश्व कम्युनिस्ट आंदोलन की प्रधान प्रवृत्ति बनाने में [[कम्युनिस्ट इंटरनैशनल]] यानी कोमिंटर्न (1919-1943) की उल्लेखनीय भूमिका रही। इसकी स्थापना बोल्शेविक क्रांति की पृष्ठभूमि और मध्य युरोप में चल रही क्रांतिकारी उभार की परिस्थितियों में लेनिन द्वारा 1919 में की गयी थी। इसका सदस्य बनने के लिए हर कम्युनिस्ट पार्टी को लाज़मी तौर पर सुधारवादियों और मध्यमार्गियों से ख़ुद को मुक्त घोषित करना पड़ता था। दूसरे, केवल वे ही पार्टियाँ इसकी सदस्य बन सकती थीं जो कठोर अनुशासन और संगठन के अत्यंत केंद्रीकृत नियमों का पालन करते हुए खुली राजनीति के साथ-साथ भूमिगत राजनीति का भी तालमेल बैठाती हों और जो अपने देश की सेनाओं में भी कम्युनिस्ट प्रचार चलाती हों। स्तालिन सोवियत संघ  में समाजवादी अर्थव्यवस्था और सामाजिक संबंधों की रचना जिस तरह से कर रहे थे, कोमिंटर्न अपनी सदस्य कम्युनिस्ट पार्टियों को ठीक उसी पैटर्न पर चलाने की कोशिश करता था।
 
1952 में तेरह साल के अंतराल के बाद उन्नीसवीं पार्टी कांग्रेस हुई जिसमें स्तालिन ने पार्टी-राज्य प्रणाली में कई तरह के सुधारों की भूमिका बाँधी।  इस कांग्रेस में पार्टी की गतिविधियों पर स्वंय रिपोर्ट पेश न करके स्तालिन ने ज्यार्जी मैलेंकोव से रपट रखवाई थी। कुछ लोगों का ख़याल था कि यह पर्जिंग के नये दौर की तैयारी है। दरअसल, यह परवर्तीर् स्तालिनवाद की तैयारी थी जिसे सोवियत संघ की उत्तर- विश्वयुद्धीन भूमिका की रोशनी में की जाने वाली नयी तैयारियों का आगाज़ करना था। लेकिन मार्च, 1953 में स्तालिन की मृत्यु के बाद पार्टी के भीतर सत्ता-संघर्ष शुरू हो गया जिसमें निकिता ख्रुश्चेव स्तालिन के उत्तराधिकारी के रूप में उभरे। ख्रुश्चेव ने देखा कि स्तालिनवाद के तहत अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण तो हो गया है, पर कृषि की बुरी हालत है और उपभोक्ताओं को बुनियादी चीज़ें भी नसीब नहीं हैं। उन्होंने सोवियत व्यवस्था को स्तालिनवाद के प्रभाव से मुक्त करने का अभियान चलाया ताकि उसे आर्थिक रूप से अधिक कामयाब बनाया जा सके। उन्होंने स्तालिन द्वारा की गयी पर्जिंग को [[मार्क्सवाद-लेनिनवाद]] विरोधी करार दिया। हालाँकि कई प्रेक्षकों की उस समय भी मान्यता थी कि सोवियत प्रणाली ने जो रूप ले लिया है, उसमें किसी तरह का सुधार करना तकरीबन नामुमकिन है।
 
==इन्हें भी देखें==
* [[लेनिनवाद]]
 
== संदर्भ ==