"पवित्र संघ": अवतरणों में अंतर

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*(अ) संघ के सदस्य शासक परस्पर एक दूसरे को बंधु समझेंगे और प्रजा को संतानतुल्य मानेंगे।
 
*(आ) वे संकट के समय एक-दूसरे को सहायता व सहयोग देंगे।
 
*(इ) सदस्य शासक अपनी गृह नीति और विदेश नीति [[ईसाई धर्म]] के सिद्धांतों- न्याय, दानशीलता, शान्ति और स्वतंत्रता के अनुरूप संचालित करेंगे।
 
यह पवित्र संघ यूरोप में कोई विशेष सफलता और उपलब्धि नहीं प्राप्त कर सका, क्योंकि जार एलेक्जेंडर के अतिरिक्त अन्य किसी भी शासक ने इसकी सार्थकता और सफलता के लिए प्रयास नहीं किया। 1825 ई. में एलेक्जेंडर की मृत्यु के बाद ही इस पवित्र संघ का अवसान हो गया। यद्यपि इस पवित्र संघ के लक्ष्य बुरे नहीं थी, पर एक राजनीतिक साधन के रूप में और एक कूटनीतिज्ञ यंत्र के रूप में यह असफल प्रयास रहा। [[मेटरनिख]] ने इसे एक 'आडम्बर और ढोंग' कहा तथा इंग्लैण्ड के मंत्री केसलरे ने इसे 'बकवास' कहा। किन्तु अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के क्षेत्र में सदाचार और नैतिक मूल्यों को उत्पन्न कर उनको प्रोत्साहित करने का यह श्रेष्ठ प्रयास था।