"पीपाजी": अवतरणों में अंतर

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'''पीपाजी''' (१४वीं-१५वीं शताब्दी) [[गांगरोल]] के शाक्त राजा एवं सन्त [[कवि]] थे। वे भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे। [[गुरु ग्रंथ साहिब]] के अलावा २७ पद, १५४ साखियां, चितावणि व क-कहारा जोग ग्रंथ इनके द्वारा रचित संत साहित्य की अमुल्य निधियां है।
{{को विलय|भक्त पीपा|date=जुलाई 2014}}
'''पीपाजी''' (१४वीं-१५वीं शताब्दी) [[गांगरोल]] के शाक्त राजा एवं सन्त [[कवि]] थे।
 
==जीवन परिचय==
घर में आए हुए एक [[वैष्णव]] साधु का इन्होंने उचित सम्मान नहीं किया, तब साधु ने देवी की स्तुति करते हुए प्रार्थना की कि राजा के मन से कृष्ण तथा काली की आराधना का भेदभाव जाता रहे। देवी के प्रसाद से राजा के हृदय में कृष्णभक्ति का आविर्भाव हुआ और उन्होंने [[काशी]] जाकर [[रामानंद]] से दीक्षा ग्रहण की। बाद में उन्होंने अपनी छोटी रानी सीता के साथ [[द्वारकापुरी]] की यात्रा की। वहाँ [[कृष्ण]] के दर्शन न पाकर वे तीर्थाटन के लिए निकल पड़े। [[वृंदावन]] में वे एक दरिद्र ब्राह्मण के यहाँ ठहरे। ब्राह्मणी ने अपना परिधान बेचकर इनका सत्कार किया। लज्जावश उसके सामने न आने पर सीता देवी ने अपने परिधेय वस्त्र का आधा हिस्सा देकर उसकी लाज का निवारण किया। राजा को बड़ी ग्लानि हुई और उन्होंने ब्राह्मण की दरिद्रता दूर करने की श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हुए वहाँ से प्रस्थान कर दिया। उनकी गणना प्रमुख वैष्णवों में की जाती है।
भक्तराज पीपाजी का जन्म विक्रम संवत १३८० में [[राजस्थान]] में [[कोटा]] से ४५ मील पूर्व दिशा में [[गागरोन]] में हुआ था।<ref>{{cite web|title=हमारे संत/ पीपा जी |url=http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/tayaarinews/article1-story-67-67-199583.html |publisher= लाइव हिन्दुस्तान |date=७ नवम्बर २०११ |accessdate=२७ जुलाई २०१५ |author=विश्वनाथ सिंह}}</ref> वे चौहान गौत्र की खींची वंश शाखा के प्रतापी राजा थे। सर्वमान्य तथ्यों के आधार पर [[पीपानन्दाचार्य जी]] का जन्म चैत्र शुक्ल पूर्णिम, बुधवार विक्रम संवत १३८० तदनुसार दिनांक २३ अप्रैल १३२३ को हुआ था। उनके बचपन का नाम प्रतापराव खींची था। उच्च राजसी शिक्षा-दीक्षा के साथ इनकी रुचि आध्यात्म की ओर भी थी, जिसका प्रभाव उनके साहित्य में स्पष्ट दिखाई पडता है। किवदंतियों के अनुसार आप अपनी कुलदेवी से प्रत्यक्ष साक्षात्कार करते थे व उनसे बात भी किया करते थे।
 
पिता के देहांत के बाद संवत १४०० में आपका गागरोन के राजा के रुप में राज्याभिषेक हुआ। अपने अल्प राज्यकाल में पीपाराव जी द्वारा फिरोजशाह तुगलक, मलिक जर्दफिरोज व लल्लन पठान जैसे योद्धाओं को पराजित कर अपनी वीरता का लोहा मनवाया। आपकी प्रजाप्रियता व नीतिकुशलता के कारण आज भी आपको गागरोन व मालवा के सबसे प्रिय राजा के रुप में मान सम्मान दिया जाता है।
 
== रामानंद की सेवा में ==
दैवीय प्रेरणा से पीपाराव गुरु की तलाश में काशी के संतश्रेष्ठ जगतगुरु [[रामानन्दाचार्य जी]] की शरण में आ गए तथा गुरु आदेश पर कुए में कूदने को तैयार हो गए। [[रामानन्दाचार्य जी]] आपसे बहुत प्रभावित हुए व पीपाराव को गागरोन जाकर प्रजा सेवा करते हुए भक्ति करने व राजसी संत जीवन व्यतित करने का आदेश दिया।
एक वर्ष पश्चात संत रामानन्दाचार्य जी अपनी शिष्य मंडली के साथ गागरोन पधारे व पीपाजी के करुण निवेदन पर आसाढ शुक्ल पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) संवत १४१४ को दीक्षा देकर वैष्णव धर्म के प्रचार के लिये नियुक्त किया। पीपाराव ने अपना सारा राजपाठ अपने भतीजे कल्याणराव को सौपकर गुरुआज्ञा से अपनी सबसे छोटी रानी सीताजी के साथ वैष्णव -धर्म प्रचार-यात्रा पर निकल पडे।
 
== चमत्कार ==
[[पीपानन्दाचार्य जी]] का संपुर्ण जीवन चमत्कारों से भरा हुआ है। राजकाल में देवीय साक्षात्कार करने का चमत्कार प्रमुख है उसके बाद संयास काल में स्वर्ण द्वारिका में ७ दिनों का प्रवास, पीपावाव में रणछोडराय जी की प्रतिमाओं को निकालना व आकालग्रस्त इस मे अन्नक्षेत्र चलाना, सिंह को अहिंसा का उपदेश देना, लाठियों को हरे बांस में बदलना, एक ही समय में पांच विभिन्न स्थानों पर उपस्थित होना, मृत तेली को जीवनदान देना, सीता जी का सिंहनी के रुप में आना आदि कई चमत्कार जनश्रुतियों में प्रचलित हैं।
 
== रचना की संभाल ==
[[गुरु नानक देव]] जी ने आपकी रचना आपके पोते अनंतदास के पास से टोडा नगर में ही प्राप्त की। इस बात का प्रमाण अनंतदास द्वारा लिखित 'परचई' के पच्चीसवें प्रसंग से भी मिलता है। इस रचना को बाद में [[गुरु अर्जुन देव]] जी ने [[गुरु ग्रंथ साहिब]] में जगह दी।
 
== रचना ==
; पीपाजी की रचना का एक नमूना
:कायउ देवा काइअउ देवल काइअउ जंगम जाती ॥
Line 11 ⟶ 24:
:जो ब्रहमंडे सोई पिंडे जो खोजै सो पावै ॥
:पीपा प्रणवै परम ततु है सतिगुरु होइ लखावै ॥२॥३॥
 
<b><center>जो ब्रहमंडे सोई पिंडे
जो खोजे सो पावै॥</b></center>
<center>([[गुरु ग्रंथ साहिब]], पन्ना ६८५)</center>
<center>(जो प्रभु पूरे ब्रह्माँड में मौजूद है, वह मनुष्य के हृदय में भी विद्यमान है।)</center>
 
<br />'''<center>पीपा प्रणवै परम ततु है, सतिगुरु होए लखावै॥२॥'''</center>
<center>([[गुरु ग्रंथ साहिब]], पन्ना ६८५)</center>
<center>(पीपा परम तत्व की आराधना करता है, जिसके दर्शन पूर्ण सतिगुरु द्वारा किये जाते हैं।)</center>
 
== सन्दर्भ ==
{{टिप्पणीसूची}}
 
{{सिख धर्म}}
 
[[श्रेणी:भक्ति आन्दोलन]]
[[श्रेणी:सिख धर्म]]
 
[[श्रेणी:वैष्णव]]