"ज़फ़रनामा": अवतरणों में अंतर

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'''जफरनामाज़फ़रनामा''' अर्थात 'विजय पत्र' [[गुरु गोविंद सिंह]] द्वारा अत्याचारी तथा क्रूर मुगलमुग़ल शासक [[औरंगजेबऔरंगज़ेब]] को लिखा गया था। ज़फ़रनामा, [[दसम ग्रंथ]] का एक भाग है और इसकी भाषा [[फारसीफ़ारसी]] है।
 
भारत के गौरवमयी इतिहास में दो पत्र विश्वविख्यात हुए। पहला पत्र [[छत्रपति शिवाजी]] द्वारा [[प्रथम जयसिंह|राजा जयसिंह]] को लिखा गया तथा दूसरा पत्र [[गुरु गोविन्द सिंह]] द्वारा अत्याचारी तथा क्रूर मुगल शासक [[औरंगजेबऔरंगज़ेब]] को लिखा गया, जिसे '''जफरनामाज़फ़रनामा''' अर्थात 'विजय पत्र' कहते हैं। नि:संदेह गुरु गोविंद सिंह का यह पत्र आध्यात्मिकता, कूटनीति तथा शौर्य की अद्भुत त्रिवेणी है।
 
गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय प्रतीक थे।
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४२ वर्षीय एक आध्यात्मिक तथा वीरत्व के धनी महापुरुष की ९० वर्षीय मतान्ध तथा बर्बर औरंगजेब से भेंट होती तो क्या होता, कहना कठिन है। एक विद्वान ने लिखा है कि 'विश्वास, अविश्वास से मिलने चला था, किंतु उसके पहुंचने से पूर्व ही अविश्वास दम तोड़ चुका था।' जून, १७०७ ई. में जाजू नामक स्थान पर शहजादा मुअज्जम को 'बहादुरशाह' के नाम से सम्राट बनाया गया, जिसने गुरु गोविंद सिंह का राजकीय सम्मान किया।
 
== जफरनामाज़फ़रनामा का इतिहास ==
जफरनामाज़फ़रनामा का शाब्दिक अर्थ है 'जीत की चिट्ठी'। गुरु गोविंद सिंह ने इसे मूलत: [[फारसीफ़ारसी]] में लिखा है। इसमें मामूली परिवर्तन भी हुए हैं। अनेक भाषाओं में इसके अनुवाद किये गये हैं। हिन्दी में इसका अनुवाद [[बालकृष्ण मुंजतर]] (कुरुक्षेत्र, १९९०) तथा जनजीवन जोत सिंह आनंद (देहरादून, २००६) ने किया। महेन्द्र सिंह ने गुरुमुखी में तथा सुरेन्द्र जीत सिंह ने अंग्रेजी में इसका अनुवाद किया है। कुछ समय पूर्व नवतेज सिंह सरन ने भी इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया। इस पत्र में फारसी में कुल १११ काव्यमय पद (शेर) हैं। जफरनामा में गुरु गोविंद सिंह ने वीरता तथा शौर्य से पूर्ण अपनी लड़ाइयों तथा क्रियाकलापों का रोमांचकारी वर्णन किया है। इस काव्यमय पत्र में एक-एक लड़ाई का वर्णन किसी में भी नवजीवन का संचार करने के लिए पर्याप्त है। इसमें [[खालसा पंथ]] की स्थापना, [[आनंदपुर साहिब]] छोड़ना, फतेहगढ़फ़तेहगढ़ की घटना, [[चालीस मुक्त|चालीस सिखों की शहीदी]], दो गुरु पुत्रों का दीवार में चुनवाया जाना तथा [[चमकौर का युद्ध|चमकौर के संघर्ष]] का वर्णन है। इसमें मराठों तथा राजपूतों द्वारा औरंगजेब की करारी हार का वृत्तांत भी शामिल किया गया है। साथ ही गुरु गोविंद सिंह ने औरंगजेब को यह चेतावनी भी दी है कि उन्होंने पंजाब में उसकी (औरंगजेब की) पराजय की पूरी व्यवस्था कर ली है।
 
== स्वाभिमान और शौय का घोष ==
गुरु गोविंद सिंह के जफरनामाज़फ़रनामा में वर्णित मंतव्य को स्पष्ट करने के लिए उनके कुछ प्रमुख पदों का यहां भावार्थ देना उपयुक्त होगा। गुरु गोविंद सिंह ने जफरनामा का प्रारंभ ईश्वर के स्मरण से किया है। उन्होंने अपने बारे में लिखा है कि 'मैंने खुदा की कसम खाई है, जो तलवार, तीर-कमान, बरछी और कटार का खुदा है और युद्धस्थल में तूफान जैसे तेज दौड़ने वाले घोड़ों का खुदा है।' उन्होंने औरंगजेबऔरंगज़ेब को सम्बोधित करते हुए लिखा, 'उसका (ईश्वर का) नाम लेकर, जिसने तुम्हें बादशाहत दी और मुझे धर्म की रक्षा की दौलत दी है, मुझे वह शक्ति दी है कि मैं धर्म की रक्षा करूं और सच्चाई का झंडा ऊंचा हो।' गुरु गोविंद सिंह ने इस पत्र में औरंगजेबऔरंगज़ेब को 'धूर्त', 'फरेबी' और 'मक्कार' बताया। साथ ही उसकी इबादत को 'ढोंग' कहा तथा उसे अपने पिता तथा भाइयों का हत्यारा भी बताया।
 
गुरु गोविंद सिंह ने अपने स्वाभिमान तथा वीरभाव का परिचय देते हुए लिखा, व्मैं ऐसी आग तेरे पांव के नीचे रखूंगा कि पंजाब में उसे बुझाने तथा तुझे पीने को पानी तक नहीं मिलेगा। व् गुरु गोविंद सिंह ने औरंगजेब को चुनौती देते हुए लिखा, 'मैं इस युद्ध के मैदान में अकेला आऊंगा। तुम दो घुड़सवारों को अपने साथ लेकर आना।' फिर लिखा, व्क्या हुआ (परवाह नहीं) अगर मेरे चार बच्चे (अजीत सिंह, जुझार सिंह, फतेह सिंह, जोरावर सिंह) मारे गये, पर कुंडली मारे डंसने वाला नाग अभी बाकी है।'
 
गुरु गोविंद सिंह ने औरंगजेबऔरंगज़ेब को इतिहास से सीख लेने की सलाह देते हुए लिखा, 'सिकंदर और शेरशाह कहां हैं? आज तैमूर कहां है, बाबर कहां है, हुमायूं कहां है, अकबर कहां है?' उन्होंने पुन: औरंगजेबऔरंगज़ेब को ललकारते हुए लिखा, 'अगर (तू) कमजोरों पर जुल्म करता है, उन्हें सताता है, तो कसम है कि एक दिन आरे से चिरवा दूंगा।' इसके साथ ही गुरु गोविंद सिंह ने युद्ध तथा शांति के बारे में अपनी नीति को स्पष्ट करते हुए लिखा, 'जब सभी प्रयास किये गये हों, न्याय का मार्ग अवरुद्ध हो, तब तलवार उठाना सही है तथा युद्ध करना उचित है।' और अंत के पद में ईश्वर के प्रति पूर्ण आस्था व्यक्त करते हुए उन्होंने लिखा, 'शत्रु भले हमसे हजार तरह से शत्रुता करे, पर जिनका विश्वास ईश्वर पर है, उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।'
 
वस्तुत: गुरु गोविंद सिंह का जफरनामाज़फ़रनामा केवल एक पत्र नहीं बल्कि एक वीर का काव्य है, जो भारतीय जनमानस की भावनाओं का द्योतक है। अतीत से वर्तमान तक न जाने कितने ही देशभक्तों ने उनके इस पत्र से प्रेरणा ली है। गुरु गोविंद सिंह के व्यक्तित्व तथा कृतित्व की झलक उनके जफरनामाज़फ़रनामा से प्रकट होती है। उनका यह पत्र संधि नहीं, युद्ध का आह्वान है। साथ ही शांति, धर्मरक्षा, आस्था तथा आत्मविश्वास का परिचायक है। उनका यह पत्र पीड़ित, हताश, निराश तथा चेतनाशून्य समाज में नवजीवन तथा गौरवानुभूति का संचार करने वाला है। यह पत्र अत्याचारी औरंगजेबऔरंगज़ेब के कुकृत्यों पर नैतिक तथा आध्यात्मिक विजय का परिचायक है।
 
== इन्हें भी देखें ==