"कामन्दकीय नीतिसार": अवतरणों में अंतर
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नीतिसार के आरम्भ में ही विष्णुगुप्त चाणक्य की प्रशंशा की गयी है-
:'' वंशे विशालवंश्यानाम् ऋषीणामिव
:'' अप्रतिग्राहकाणां यो बभूव भुवि विश्रुतः ॥
:'' जातवेदा इवार्चिष्मान् वेदान्
:'' योधीतवान् सुचतुरः चतुरोऽप्येकवेदवत् ॥
:'' यस्याभिचारवज्रेण
:'' पपात मूलतः श्रीमान् सुपर्वा नन्दपर्वतः ॥
:'' एकाकी मन्त्रशक्त्या यः शक्त्या
:'' आजहार नृचन्द्राय चन्द्रगुप्ताय
:'' नीतिशास्त्रामृतं धीमान्
:'' समुद्दद्ध्रे नमस्तस्मै विष्णुगुप्ताय वेधसे ॥ इति ॥
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