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इस ग्रन्थ में पृथ्वी पर प्राप्त सभी प्रकार के वानस्पतिक (औद्भिज), प्राणिज व पार्थिव ([[अंग्रेजी|अं]]: Plants, Animals & Minerals) पदार्थों के गुणकर्मों का [[संस्कृत भाषा]] में श्लोकबद्ध वर्णन मिलता है। इसकी विशद व्याख्या अन्यान्य संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेजी के विद्वानों ने समय-समय पर की होगी।
 
इस ग्रन्थ में वनौषधियों के निर्णय और स्वरूप ज्ञान के लिए शास्त्र निर्दिष्ट पद्धति से वनों और पर्वतों में जाकर अमूल्य ज्ञान का संग्रह है। इस ग्रन्थ के अंत में लिखा गया परिशिष्ट भाग आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा का समन्वित देशी चिकित्सा प्रणाली का मार्ग दर्शन करता है। परिशिष्ट तीन खण्डों में विभाजित है। प्रथम खंड में प्राकृतिक पदार्थो (अयुर्वेदिक जड़ी बूटियों ), द्वितीय खंड में यूनानी चिकित्सा तथा तृतीय खंड में देशी चिकित्सा का विवरण मिलता है। पुस्तक के सबसे अंत में अकारादि-क्रमानुसार निघन्टु भाग-स्थित द्रव्यों के व्यहारोपयोगी अंग तथा उनकी मात्राएँ दी गई हैं।
 
==संपादन एवं प्रकाशन ==