"सपुष्पक पौधा": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Nelumno nucifera open flower - botanic garden adelaide.jpg|thumb|right|कमल]]
 
[[बीज]] पैदा करनेवाले पौधे दो प्रकार के होते हैं: नग्न या [[विवृतबीजी]] तथा बंद या संवृतबीजी। '''सपुष्पक''', '''संवृतबीजी''', या '''आवृतबीजी''' (flowering plants या angiosperms या Angiospermae या Magnoliophyta, Magnoliophyta, मैग्नोलिओफाइटा) एक बहुत ही बृहत् और सर्वयापी उपवर्ग है। इस उपवर्ग के पौधों के सभी सदस्यों में [[पुष्प]] लगते हैं, जिनसे बीज [[फल]] के अंदर ढकी हुई अवस्था में बनते हैं। ये वनस्पति जगत् के सबसे विकसित पौधे हैं। [[मानव|मनुष्यों]] के लिये यह उपवर्ग अत्यंत उपयोगी है। बीज के अंदर एक या दो दल होते हैं। इस आधार पर इन्हें [[एकबीजपत्री]] और [[द्विबीजपत्री]] वर्गों में विभाजित करते हैं। सपुष्पक पौधे में [[जड़]], [[तना]], [[पत्ती]], [[फूल]], [[फल]] निश्चित रूप से पाए जाते हैं।
 
== रचना ==
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यह पृथ्वी के ऊपर के भाग का मूल भाग है, जिसमें अनेकानेक शाखाएँ, टहनियाँ, पत्तियाँ और पुष्प निकलते हैं। बीज के जमने पर प्रांकुल (plumule) से निकले भाग को तना कहते हैं। यह धरती से ऊपर की ओर बढ़ता है। इससे निकलनेवाली शाखाएँ बहिर्जात (exogenous) होती हैं, अर्थात् जड़ों की शाखाओं की तरह अंत:त्वचा से नहीं निकलतीं वरन् बाहरी ऊतक से निकलती हैं। तने पर पत्ती, पर्णकलिका तथा पुष्पकलिका लगी होती है।
 
संवृतबीजों में '''तने कई प्रकार''' पाए जाते हैं। इन्हें साधारणतया मजबूत (strong) तथा दुर्बल तनों में विभाजित किया जाता है। मजबूत तने काफी ऊँचे बढ़ते जाते हैं। जैसे ताड़ को कोडेक्स तना, या गाँठदार बाँस का कल्म (culm) तना इत्यादि। दुर्बल तने भी कई प्रकार के होते हैं, जैसे ट्रेलिंग या अनुगामी (trailing), क्रोपिंग इत्यादि। शाखा के तने से निकलने की रिति को "शाखा विन्यास" कहते हैं। अगर एक स्थान से मुख्य शाखा दो भागों में विभाजित हो जाए, तो इसे द्विभाजी (dichotomous) विन्यास कहते हैं अन्यथा अगर मुख्य तने के किनारे से टहनियाँ निकलती रहे, तो इन्हें पार्श्व (lateral) विन्यास कहते हैं। द्विभाजी विभाजन के भी कई रूप होते हैं, जैसे यथार्थ (true) द्विविभाजन, या कुंडलनी (helicoid), या वृश्चिकी (scorpioid)। पार्श्व शाखाएँ या तो अनिश्चित रूप से बढ़ती चलती है, जिसे असीमाक्षी (recemose) शाखा विन्यास कहते हैं, या वह जिसमें शाखाओं की वृद्धि रुक जाती है और जिसे समीमाक्षी (Cymose) विन्यास कहते हैं।
 
'''तने का कार्य''' जड़ द्वारा अवशोषित जल तथा लवणों को ऊपर की ओर पहुँचाना है, जो पत्ती में पहुँचकर सूर्य के प्रकाश में संश्लेषण के काम में आते हैं। बने भोजन को तने द्वारा ही पोधे के हर एक भाग तक पहुँचाया जाता है। इसके अतिरिक्त तने पौधों को खंभे के रूप में सीधा खड़ा रखते हैं। ये पत्तियों को जन्म देकर भोजन बनाने तथा पुष्प को जन्म देकर जनन कार्य सम्पन्न करने में सहायक होते हैं। बहुत से तने भोजन का संग्रह भी करते हैं। कुछ तने पतले होने के कारण स्वयं सीधे नहीं उग पाते और अन्य किसी मजबूत आधार या अन्य वृक्ष से लिपटकर ऊपर बढ़ते चलते हैं। कुछ में तने काँटों में परिवर्तित हो जाते हैं। बहुत से पौधों में तने मिट्टी के नीचे उगते हैं और कई तने रूपविशेष धारण कर अलग अलग कार्य करते हैं, जैसे अदरक का परिवर्तित तना, जो खाया जाता है। इसे प्रकंद (Rhizome) कहते हैं। आलू भी ऐसा ही तना है जिसे कंद (Tuber) कहते हैं। इन तनों पर भी कलिका रहती है, जो पादप प्रसारण के कार्य आती है। प्याज का खानेवाला भाग मिट्टी के नीचे रहनेवाला तना ही है, जिसे शल्क कंद (Bulb) कहते हैं। इसमें शल्कपत्र तथा अग्रस्थ कलिका दबी पड़ी रहती है। लहसुन, केना, बनप्याजी तथा अन्य कई एक एकबीजपत्री संवृतबीजी में ऐसे तने मिलते हैं। सूरन तथा बंडे का भी खानेवाला भाग भूमिगत रहता है और यह भी शाखा का ही रूप है, जिसे घन कंद (Corm) कहते हैं। तने का ऐसा भी रूपांतर कई पौधों में पाया जाता है, जिसका कुछ भाग भूमि के नीचे और कुछ भाग भूमि के ऊपर रहते हुए विशेष कार्य करता है, जैसे दूब घास में तने उर्पार भूस्तारी (runner) के रूप पृथ्वी पर पड़े रहते हैं और उनकी पर्वसंधि (node) से जड़ मिट्टी में घुस जाती है। इसी से मिलते जुलते भूस्तारी (stolon) प्रकार के तने होते हैं, जैसे झूमकलता, या चमेली इत्यादि। भूस्तारी (offset) तने जलकुंभी में, तथा अंत: भूस्तारी (sucker) तने पुदीना में होते हैं।